Author: NARESH BHABLA

भौतिक विज्ञान : गुरुत्वाकर्षण गुरुत्वाकर्षण ( Gravity ) एक पदार्थ द्वारा एक दूसरे की ओर आकृष्ट होने की प्रवृति है। गुरुत्वाकर्षण के बारे में पहली बार कोई गणितीय सूत्र देने की कोशिश आइजक न्यूटन द्वारा की गयी जो आश्चर्यजनक रूप से सही था। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन किया। न्यूटन के सिद्धान्त को बाद में अलबर्ट आइंस्टाइन द्वारा सापेक्षता सिद्धांत से बदला गया। इससे पूर्व वराह मिहिर ने कहा था कि किसी प्रकार की शक्ति ही वस्तुओं को पृथिवी पर चिपकाए रखती है। गुरुत्वाकर्षण बल ( Gravitational Force ) किसी भी दो पदार्थ , वस्तु या कणो की बिच मौजूद एक…

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गीता का निष्काम कर्म गीता गीता_महाभारत_के भीष्म पर्व का एक भाग है इसे भगवद गीता के नाम से पुकारा गया है गीता_ही एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें दर्शनशास्त्र धर्म और नीतिशास्त्र का संतुलित समन्वय हुआ है गीता_में जीवन का एकमात्र उद्देश्य बताया गया है- ब्रम्ह में लीन होना अथवा ईश्वर की निकटता प्राप्त करना यही अवस्था मोक्ष है गीता_के नैतिक विचारों में 3 विभागों का निर्माण होता है ज्ञान मार्ग, कर्म मार्ग और भक्ति मार्ग गीता_का मुख्य विषय कर्म योग कहा जा सकता है गीता_में सत्य की प्राप्ति के लिए कर्म करने का आदेश दिया गया है गीता_के अनुसार अचेतन…

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Buddhist Darshan Buddhist Darshan (बौद्ध दर्शन) छठी शताब्दी ईसा पूर्व के उत्तरार्ध में अनेक धार्मिक संप्रदायों का उदभव हुआ | इन सभी धार्मिक संप्रदायों के उदभव का कारण पुरानी रुढ़िवादी धार्मिक व्यवस्था थी | इस काल में लगभग 62 संप्रदायों का उदय हुआ था जिनमें सबसे महत्वपूर्ण बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म थे | अन्य धार्मिक संप्रदाय जैसे एक अक्रियावाद (पूरण कश्यप), भौतिकवादी ( अजीत केशकंबली), अनिश्चय वादी ( संजय वेलट्ठिपुत्त), नियतिवादी ( मक्खलि गोशाल ) आदि प्रमुख थे | बौद्ध धर्म के संस्थापक “गौतम बुद्ध” थे l इन्हे एशिया का ज्योति पुज्ज(Light Of Asia) कहा जाता है l बुद्ध…

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Jain Darshan Jain Darshan (जैन दर्शन) प्रवर्तक:- महावीर स्वामी Jain Darshan बहुसत्तावादी तथा बहुतत्ववादी दार्शनिक संप्रदाय है इसमें अनेकांतवाद की प्रधानता है अनेकांतवाद के अनुसार जगत में अनेक वस्तुओं का अस्तित्व है तथा प्रत्येक वस्तु अनेक धर्मों को धारण किए रहती है अनंत धर्मांन्तकम् वस्तु वस्तु को जैन दर्शन में द्रव्य कहा जाता है द्रव्य का लक्षण गुण पर्यायवत द्रव्यम अर्थात जो गुण तथा पर्याय दोनों का मिश्रण होता है वह द्रव्य कहलाता है गुण :- किसी भी वस्तु में पाए जाने वाले नित्य अपरिवर्तनशील धर्म गुण कहलाते हैं पर्याय :- वस्तु में पाए जाने वाले अनित्य परिवर्तनशील धर्म पर्याय कहलाते हैं।…

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कांट का नीतिशास्त्र, संकल्प की स्वतंत्रता, और दण्ड के सिद्धान्त नीतिशास्त्र संकल्प की स्वतंत्रता ? तात्पर्य:- किसी भी कर्म को करने अथवा न करने, चुनने अथवा न चुनने की स्वतन्त्रता संकल्प की स्वतन्त्रता कहलाती हैं इसकी तीन शर्ते है:- 1. कर्म को करने की क्षमता :- यदि व्यक्ति किसी भी कर्म को करने में शारीरिक और मानसिक रूप से समर्थ नहीं है तो उस कर्म को प्रति व्यक्ति को नैतिक रूप से उत्तरदायी नही माना जा सकता है 2. ज्ञान और उद्धेश्य : – यदि कर्म अज्ञानवश अथवा बिना उदेश्य के किया जाता हैं वहाँ व्यक्ति को उस कर्म के प्रति दोषी…

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उपयोगितावाद उपयोगितावाद सुखवाद ( Suicidal ) सुख प्राप्ति से तात्पर्य किसी भी कर्म / नियम को अपनाने के स्वरूप व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होनी चाहिए दार्शनिक जे एस मिल सुख तथा आनंद को एक ही अर्थ में प्रयुक्त करता हैं अपिक्युरस शारीरिक तथा मानसिक कष्टो के अभाव को सुख कहता है सिजविक सुख को एक मानसिक अनुभूति मानता है ऐसी अनुभूति जिसकी हमको इच्छा करनी चाहिए सुखवाद दो प्रकार का होता हैं :- नेतिक सुखवादमनोवेज्ञानिक सुखवाद 1. नेतिक सुखवाद :- यह दो प्रकार का होता है (अ) स्वार्थमूलक(ब) परार्थ/ सरवार्थ मूलक :- इसे उपयोगितावाद भी कहते है नोट:- नैतिक सुखवाद में चाहिये शब्द की व्याख्या होती…

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Aristotle’s Ethics अरस्तु का नीतिशास्त्र अरस्तु पाश्चात्य नीतिशास्त्र का प्रथम लिखित ग्रंथ अरस्तु रचना निकोमेकियन एथिक्स है अरस्तु द्वारा सद्गुणों का विभाजन :- बौद्धिक :- विवेकनैतिक :- मैत्री, साहस, संयम, न्याय, दया, सहानुभूति, ममता अरस्तु_के अनुसार विवेक एकमात्र बोद्धिक सदगुण है जबकि साहस संयम न्याय नैतिक सद्गुण के अंतर्गत आते हैं मैत्री (मित्रता) एक नैतिक सद्गुण है इसके अतिरिक्त सहानुभूति, दया, ममता इत्यादि बोद्धिक सदगुण के अंतर्गत माने जाते हैं अरस्तु_का सद्गुण विषय सिद्धांत मध्यम मार्ग (गोल्डन मीन) कहलाता है जिसके अनुसार प्रत्येक नैतिक सद्गुण एकांतिक मतों की मध्य की अवस्था है अर्थात ना तो पूर्णतः अपना सर्वस्व त्याग करना…

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ग्रीक एथिक्स सामान्य परिचय ग्रीक एथिक्स / पाश्चात्य नितिशात्र ग्रीक एथिक्स एथिक्स शब्द की उत्पत्ति यूनानी / ग्रीक भाषा के एथोस शब्द से हुई ह जिसका अर्थ है परंपरा /रीति रिवाज एथिक्स(नितिशात्र) का संबंध मानवीय आचरण से माना जाता है नीतिशास्त्र एक आदर्श मूलक विज्ञान है नीतिशास्त्र चाहिए शब्द की व्याख्या करता है नीतिशास्त्र (एथिक्स) ऐच्छिक कर्मो का मूल्यांकन करता है कर्म दो प्रकार के होते हैं ऐच्छिक कर्म- जिन पर मनुष्यों का नियंत्रण रहता हैअनैच्छिक कर्म- वे कर्म जिन पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं रहता जैस ह्रदय गति श्वास आदि नीतिशास्त्र मानवीय कर्मों का मूल्यांकन करता है नीतिशास्त्र…

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Rene Descartes-Cartesian System Rene Descartes-Cartesian System (रेने देकार्ते-कार्टिशियन पद्दति) Rene Descartes फ्रांस के तुरेन शहर के निवासी थे रेने देकार्ते को बुद्धिवाद और आधुनिक दर्शन का जनक कहा जाता है देकार्त के दर्शन में यथार्थ ज्ञान प्राप्ति का माध्यम सुस्पष्टता तथा सुभिन्नता दिखाई देता है डेकार्ट बुध्दिवादी, वस्तुवादी, उग्रदैतवादी, सन्देहवादी, ईश्वरवादी, सकल्पस्वत्रंतवादि, अनेकतावादी अन्तक्रियावादी दार्शनिक माना जाता है डेकार्ट की प्रणाली को संश्यात्मक प्रणाली के नाम से जाना जाता है डेकार्ट ने गणित विषय के आधार पर अपने दर्शन का निर्माण किया देकार्त यथार्थ ज्ञान प्राप्ति के दो साधन स्वीकार करते हैं प्रतिभान- हमारी आत्मा में अवस्थित सुस्पष्ट तथा सुभिन्न सार्वभौमिक यथार्थ ज्ञान…

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सुकरात की शिक्षण-पद्धति भी निराली थी । उसकी पद्धति का उद्देश्य सत्य को प्रस्तुत करना न होकर, सत्य का अन्वेषण करना था। सुकरात की शिक्षण-पद्धति वार्तालाप पर आधारित थी। सुकराती शिक्षण-विधि में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सभी अच्छे कार्यों के मूल में ज्ञान है। सुकरात के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति होना चाहिए। सुकरात की दृष्टि में जीवन का उद्देश्य- भद्र आचरण करना है। भद्र का आचरण तब तक सम्भव नही, जब तक ज्ञान न हो-अतः ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक है। यह ज्ञान आत्म-परीक्षण से सम्भव होगा, अतः हर व्यक्ति में सोचने-विचारने की शक्ति का…

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