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    Home»Economy»भारत की आर्थिक स्थिती: Indian Economic Status
    Economy

    भारत की आर्थिक स्थिती: Indian Economic Status

    By NARESH BHABLAJuly 5, 2020Updated:June 15, 2021No Comments8 Mins Read
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    भारत की आर्थिक स्थिती, भारत की आर्थिक स्थिती

    Page Contents

    • भारत की आर्थिक स्थिती
      • अर्थशास्त्र के क्षेत्र में मानव द्वारा की गई क्रियाए (Functions performed by humans in the field of economics)
        • आर्थिक क्रियाओं के प्रकार (Types of economic actions)
        • उत्पादन के आधारभूत कारक (Basic factors of production)
        • उत्पादन के लिए 4 मूल आवश्यकताएं होती हैं (4 Basic Requirements for Production)
        • 2. उपभोग (Consumption)
        • 3. निवेश (Investment)
        • 4. विनिमय (Exchange)
        • 5. वितरण (Delivery)
        • भारत में नियोजन का इतिहास (History of planning in India)
        • मूल्य संवर्धन कर (Value addition tax)
        • वेट में लगभग 550 वस्तुओं को शामिल किया गया था , वेट की दो दरें निर्धारित की गई थी:—
        • चल्लैया कमेटी सिफारिशें-राज प्रोफेसर-1991

    भारत की आर्थिक स्थिती

    अर्थशास्त्र शब्द संस्कृत शब्दों के अर्थ धन और शास्त्र की संधि से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है धन का अध्ययन

    अर्थशास्त्र का वर्तमान रूप में विकास पाश्चात्य देशों में ( विशेषकर इंग्लैंड ) में हुआ है 1776 में प्रकाशित एडम स्मिथ की पुस्तक द वेल्थ ऑफ नेशंस को अर्थव्यवस्था का उद्गम स्त्रोत माना जाता है एडम स्मिथ वर्तमान अर्थशास्त्र के जन्मदाता माने जाते हैं

    इस प्रकार अर्थशास्त्र एक विषय वस्तु है जो दुर्लभ संसाधनों के विवेकशील प्रयोग पर इस प्रकार केंद्रित है कि जिससे हमारा आर्थिक कल्याण अधिकतम ह अर्थशास्त्र सामाजिक विज्ञान की वह शाखा है जिसके अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन वितरण विनिमय और उपभोग का अध्ययन किया जाता है

    एल.रोबिंसन के अनुसार- अर्थशास्त्र एक विज्ञान है जो मानव व्यवहार के संदर्भ में उपलब्ध वैकल्पिक साधनों और उनके उद्देश्यों के मध्य से संबंधों का अध्ययन करता है

    प्रसिद्ध अर्थशास्त्री एडम स्मिथ ने 1776 में प्रकाशित अपनी पुस्तक (An Enquiry into the Nature and the Causes of the Wealth of Nations)में अर्थशास्त्र को धन का विज्ञान माना है

    डॉक्टर अल्फ्रेड मार्शल ने 1890 में प्रकाशित अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र के सिद्धांत में अर्थशास्त्र के कल्याण संबंधी परिभाषा देकर इस को लोकप्रिय बना दिया

    डॉक्टर अल्फ्रेड मार्शल के अनुसार- अर्थशास्त्र आदर्श विज्ञान है ब्रिटेन के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री लाल रॉबिंसन ने 1932 में प्रकाशित अपनी पुस्तक An Essay on the Nature and Significance में अर्थशास्त्र को दुर्लभता का सिद्धांत माना है

    लार्ड रॉबिंसन के अनुसार- अर्थशास्त्र वास्तविक एवं चुनाव का विज्ञान है

    जे.के.मेहता के अनुसार- अर्थशास्त्र आवश्यकता विहीनता का लक्ष्य सुख प्रदान करता है

    आधुनिक अर्थशास्त्री सैम्यूल्सन ने- अर्थशास्त्र को विकास का शास्त्र कहा है।

    अर्थशास्त्र के क्षेत्र में मानव द्वारा की गई क्रियाए (Functions performed by humans in the field of economics)

    मानव द्वारा की गई क्रियाएं दो प्रकार की होती है–

    1- आर्थिक और
    2- गैर आर्थिक

    मानव द्वारा की गई इन दो क्रियाओं को दैनिक जीवन की क्रियाएं करते हैं

    1⃣ आर्थिक क्रियाएं ( Economic actions )- वे क्रियाएँ जिनसे व्यक्ति धन और संपत्ति प्राप्त कर अपनी इच्छाओं की पूर्ति करता है अथार्थ धन उपार्जन के उद्देश्य से की गई सभी क्रियाएं आर्थिक क्रियाएं हैं जैसे किताबें प्रकाशित करना नौकरी करना व्यवसाय करना आदि

    संसार के सभी व्यक्ति उपभोक्ता हैं हम अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग और उत्पादन करते हैं

    2⃣ गैर आर्थिक क्रियाएं ( Non economic actions)- वे सभी क्रियाएं जो बिना धन उपार्जन के उद्देश्य से की जाती हैं गैर आर्थिक क्रिया कहलाती हैं जिससे सामाजिक कार्य धार्मिक कार्य मनोरंजन करना संगीत सुनना माता पिता और भाई बहन की सेवा आदि यह सभी गैर आर्थिक क्रियाएं प्यार सहानुभूति कर्तव्य और देश प्रेम के उद्देश्य से की जाती हैं

    आर्थिक क्रियाओं के प्रकार (Types of economic actions)

    अर्थशास्त्र में मानव की आर्थिक क्रियाओं को निम्न भागों में बांटा जा सकता है-

    1- उत्पादन
    2- उपभोग
    3- निवेश
    4- विनिमय
    5- वितरण

    1. उत्पादन ( Production )

    अर्थशास्त्र में उत्पादन औद्योगिक प्रतिष्ठानों द्वारा वस्तुओं सामानों या सेवाओं को निर्मित करने की प्रक्रिया को कहते हैं

    उत्पादन का उद्देश्य ( Purpose of production ) – ऐसी वस्तुएं और सेवाएं बनाना है जिसकी मनुष्य को बेहतर जीवन यापन के लिए आवश्यकता होती है

    उत्पादन के आधारभूत कारक (Basic factors of production)

    • भूमि
    • पूंजी और
    • श्रम

    उत्पादन भूमि पूंजी और श्रम को संयोजित कर के किया जाता है इसीलिए यह उत्पादन के आधारभूत कारक कहलाते हैं

    उत्पादन के लिए 4 मूल आवश्यकताएं होती हैं (4 Basic Requirements for Production)

    • भूमि और अन्य प्राकृतिक संसाधन जैसे जल वन खनिज
    • श्रम
    • भौतिक पूंजी अथार्थ उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर आई लागत
    • मानव पूंजी

    2. उपभोग (Consumption)

    उपभोग मानव की वह आर्थिक क्रिया होती है जिसमें मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि होती है उपभोग मनुष्य क्रियाओं का आदि और अंत सभी है उपभोग अपनी अवस्था के अनुसार कई प्रकार के हो सकते हैं चाहे वह खाद्य पदार्थ के रूप में हो चाहे भौतिक सुख सुविधाओं के द्वारा प्राप्त उपभोग के रूप में हो

    3. निवेश (Investment)

    निवेश या विनियोग का सामान्य आशय ऐसे व्ययो से है जो उत्पादन क्षमता में वृद्धि लाएं, निवेश शब्द का कई मिलते जुलते अर्थों में अर्थशास्त्र और व्यापार प्रबंधन आदि क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है यह पद बचत करने और उपभोग में कटौती या देरी के संदर्भ में प्रयुक्त होता है

    निवेश के उदाहरण- किसी बैंक में पूजी जमा करना या परिसंपत्ति खरीदने जैसे कार्य जो भविष्य में लाभ पाने की दृष्टि से किए जाते हैं संचित निवेश या विनियोग ही पूंजी है

    4. विनिमय (Exchange)

    विनिमय का अर्थ ( Meaning of exchange )- इसका अर्थ यह होता है कि जब कोई वस्तु के बदले में कोई वस्तु का आदान-प्रदान होता है तो वह विनिमय कार्य कहलाता है

    विनिमय को दो वर्गों में विभाजित किया गया है–

    • क्रय और
    • विक्रय

    जब कोई वस्तु खरीदते हैं और उसके बदले में जो भी रकम देते हैं क्रय कहलाता है इसके विपरीत जब कोई वस्तु बेचते हैं और इसके बदले में जो रकम आती है विक्रय कहलाता है

    5. वितरण (Delivery)

    वितरण एक क्रिया है जिसमें उत्पादन के कारकों जैसे भूमि श्रम पूंजी और उद्यम के बीच आय का सही प्रकार से वितरण ताकि अधिक से अधिक लाभ अर्जित किया जा सके

    भारत में नियोजन का इतिहास (History of planning in India)

    1934 में सर एम विश्वेश्वरय्या जो कि एक इंजीनियर और राजनीति इनके द्वारा भारत के लिए नियोजित अर्थव्यवस्था पुस्तक लिखी गई जिसमें विश्वेश्वरय्या ने नियोजन को एक ऐसा ढांचा बताया जिसके आधार पर आगामी 10 वर्षों में भारत की राष्ट्रीय आय दोगुनी हो सकती है

    सन 1937 में कांग्रेस कार्यकारिणी ने प्रस्ताव पारित किया जिसके आधार पर 1938 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में 15 सदस्य राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया गया जिसे कांग्रेस योजना भी कहते हैं

    मुदालियर योजना 1941- प्रोफेसर रामास्वामी मुदालियर के नेतृत्व में अर्थशास्त्रियों ने मिलकर योजना बनाई जिसे मुदालियर योजना कहते हैं

    1944 मुंबई प्लान- मुंबई के 8 उद्योगपतियों ने( जे आर डी टाटा ,सर पुरुषोत्तम दास ठाकुर, अरदेश्यू दलाल, घनश्याम दास बिरला ,श्री राम सेठ ,कस्तूर भाई लाल,ए.डी.श्राँफ और डॉक्टर जान मथाई ने 1942 में आर्थिक विकास समिति का गठन किया

    समिति ने 1944 में ए प्लान फोर इकोनॉमिक डेवलपमेंट इन इंडिया नामक तैयार किया जिसे मुंबई योजना कहते हैं इसके अध्यक्ष जे आर डी टाटा और उपाध्यक्ष दामोदरदास बिड़ला थे इसीलिए इसे टाटा बिरला प्लान भी कहते हैं

    जन योजना (पीपुल्स प्लान)- यह योजना भारतीय श्रम संघ के सचिव श्री एम एन राय द्वारा प्रस्तुत की गई यह योजना रूसी आयोजन (विश्व में सर्वप्रथम नियोजन का प्रारंभ 1924 में सोवियत रूस से ही हुआ)के अनुभव से प्रेरित थी

    योजना आयोग- योजना आयोग का गठन 1946 में के सी नियोगी की अध्यक्षता में स्थापित सलाहकार योजना बोर्ड के सिफारिश के बाद किया गया

    15 मार्च 1950 को केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक प्रस्ताव के द्वारा एक संविधानेत्तर निकाय के रूप में योजना आयोग को गठित किया गया

    आयोग का अध्यक्ष भारत का प्रधानमंत्री होता था आयोग का एक उपाध्यक्ष होता था जो कि आयोग का पूर्णकालिक कार्यकारी प्रमुख होता था इसके स्थान पर अब नीति आयोग की स्थापना की गई है

    मूल्य संवर्धन कर (Value addition tax)

    • 1918 में जर्मनी अर्थशास्त्री शिमन्स ने वेट की अवधारणा दी थी
    • 1954 में फ्रांस पहला देश था जिसने वेट को लागू किया
    • मूल्य संवर्धन कर कोई नया कर नहीं है बल्कि कर लगाने की नई पद्धति है इसमें मूल्य संवर्धन पर कर लगाया जाता है
    • वस्तु के उत्पादन और बिक्री पर प्रत्येक चरण में लगने वाला कर है
    • भारत में सबसे पहले वेट को लगाने की सिफारिश एल के झा समिति ने की
    • 1986 में भारत में MODVAT लगाया जो एक प्रायोगिक कर या प्रायोगिक दौर था, कुछ चुनिंदा उत्पादों पर केंद्रीय एक्स्ट्रा ड्यूटी (Ex.Duty VAT )प्रणाली लागू की गई अतः इसका नाम मोडवैट कहा गया
    • सन 2000 में CENVAT(सेंट्रल वैल्यू एडेड टैक्स) लागू किया गया
    • हरियाणा पहला राज्य जिसने अपने Sales Tax को VAT 2003 मे सिस्टम से लगाया
    • उत्तर प्रदेश अंतिम राज्य था जिसने 2007 में वैट लागू किया
    • राजस्थान में VAT Tax 2006 में लागू किया

    वेट में लगभग 550 वस्तुओं को शामिल किया गया था , वेट की दो दरें निर्धारित की गई थी:—

    • बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुओं पर– 4% की दर से वेट
    • विलासिता की वस्तुओं पर– 12.50% की दर से वेट

    राजस्थान में वर्तमान में 5% और 15% दर रखी गई है रत्ना भूषण पर 1% कर लगाया जाता है,क्योंकि यह निर्यात होती है पेट्रोल-डीजल शराब लाँटरी आदि को वेट में शामिल नहीं किया गया है सेल्स की दर वस्तुओं पर अलग-अलग थी,वैट लागू करने से Un-inflation हो सकता है

    चल्लैया कमेटी सिफारिशें-राज प्रोफेसर-1991

    हमने Loffer थ्योरी/ Loffer Taxको अपनाना चाहिए ,लोफर के आधार पर कर की दर विवेक सम्मत तय किया जाना चाहिए  प्राय: आयकर की दरें अधिक होती है अतः कर चोरी अधिक होती है इससे सरकार को रेवन्यू पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है विभिन्न प्रकार की कर रियायतों को समाप्त किया जाना चाहिए इससे कर की जटिलता बढ़ती है

    • कृषि पर भी आयकर लगाया जाना चाहिए
    • VAT लागू किया जाना चाहिए
    • सेवाओं पर भी कर लगाया जाना चाहिए
    • MAT(Minimum Alternative Tax) लगाया जाना चाहिए

    भारत की आर्थिक स्थिती, भारत की आर्थिक स्थिती

    उपभोग चल्लैया कमेटी सिफारिशें-राज प्रोफेसर-1991 भारत का आर्थिक इतिहास PDF भारत की आर्थिक स्थिती भारत में नियोजन का इतिहास मूल्य संवर्धन कर विनिमय
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