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    Home»Philosophy»Vedas Upanishad Concept वेद और उपनिषद की अवधारणा
    Philosophy

    Vedas Upanishad Concept वेद और उपनिषद की अवधारणा

    By NARESH BHABLAJune 9, 2020Updated:September 8, 2020No Comments2 Mins Read
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    Page Contents

    • वेद और_उपनिषद की अवधारणा
      • वेद ( Vedas ) – 
      • त्रय ऋण

    वेद और_उपनिषद की अवधारणा

    वेद ( Vedas ) – 

    वेद_शब्द विद धातु से बना है जिसका अर्थ है जानना वेद का सामान्य अर्थ है -ज्ञान

    वेंदो को श्रुति ग्रन्थ भी कहा जाता हे वेदिक ज्ञान को साक्षात् तपोबल के आधार पर ऋषिमुनियों के द्वारा सुना गया व इसी ज्ञान को प्रारम्भ में मौखिक रूप से ऋषिमुनियों ने अपने शिष्यो को दिया था।

    वेदों को अपौरुषेय भी कहा गया क्योकि वेदों की रचना इसवरिय प्रेरणा के आधार पर ऋषि मुनियो ने की । वेदों को सहिता ग्रन्थ भी कहा जाता हे । वेदों में अलग -अलग काल में रचे गए ऋषि मुनियो के मंत्रो का संकलन हे इस कारण वे संहिता ग्रन्थ कहलाते हे।

    वेदों के भाष्यकार याष्क थे शायण के अनुसार:- वेद् वह हे जो अभीष्ट की प्राप्ति व अनिष्ट को दूर करने के अलौकिक उपाय का ज्ञान देते हे।

    ओल्डेन बर्ग के अनुसार “वेद भारतीय साहित्य व धर्म के प्राचीनतम अभिलेख हे”।

    मनुस्मरती में लिखा हे:- ‘ नास्तिको वेद् निन्दक’ अर्थात वदो की निंदा करने वाले नाश्तिक हे।

    मनुश्मृति में धर्म की चार आधार स्रोत बताये गए हे।
    1. वेद्
    2.स्मृति ग्रंध
    3. सदाचार व
    4.आत्मतुष्टि

    प्रमुख वेद चार है

    1. ऋग्वेद-मंत्र इत्यादि से सम्बन्धित
    2. यजुर्वेद-यज्ञ,कर्मकांड से
    3. सामवेद-गायन,संगीत से
    4. अथर्ववेद-जादू टोने (भूतप्रेत)

    1. ऋग्वेद- रचना काल (1500-1000BC)

    रचना क्षेत्र:- सप्त सेंधव क्षेत्र
    ऋग्वेद में 10 मंडल व 1028 सूत्र हे
    दृष्टा:- वेदों के मंत्रो को रचने वाले को रचियता नहीं कहकर दृष्टा कहा जाता हे। इसी कारण भी वेद अपौरुषेय कहलाते हे।

    ऋत्विज:- यज्ञ के द्वारा मंत्रो को पढ़ने वालो को या उच्चारण करने वालो को ऋत्विज कहा जाता हे।

    नोट:- ऋग्वेद में ऋत्विज होता या होतृ कहलाते हे।

    2. सामवेद(संगीत का वेद्)- सामवेद के ऋत्विज उदगाता कहलाते हे

    3.यजुर्वेद(यज्ञ विधियों का उलेख) – यजुर्वेद के ऋत्विज अर्धव्यू कहलाते हे

    त्रय ऋण

    1. पितृ ऋण-इसे संतानोत्पत्ति द्वारा चुकाया जाता हैं
    2. देव ऋण-इसे यज्ञ के द्वारा चुकाया जाता हैं
    3. ऋषि ऋण-इसे शिक्षा इत्यादि के द्वारा चुकाया जाता है

    वेद अपौरुषेय होते हैं- क्योंकि वेदों का रचयिता ना तो कोई लौकिक पुरुष(ऋषि-मुनि) ना ही कोई अलौकिक पुरुष हैं (ईश्वर)अपितु वेद नित्य तथा शाश्वत अनादि अनंत होते है

    वेद के तीन भाग है-

    1. संहिता -ऋचाओं से संबंधित है
    2. ब्राह्मण- गध् से संबंधित है
    3. आरण्यक- उपनिषद मुल्क दार्शनिक बातों से संबंधित है

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