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    Home»History»Ancient History»Vardhan Vansh: वर्धन वंश क्या हे इसके बारे में जाने ?
    Ancient History

    Vardhan Vansh: वर्धन वंश क्या हे इसके बारे में जाने ?

    By NARESH BHABLASeptember 9, 2020Updated:May 20, 2021No Comments2 Mins Read
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    Vardhan Vansh
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    Vardhan Vansh

    Vardhan Vansh

    वर्धन वंश की नींव छठी शती के प्रारम्भ में पुष्यभूतिवर्धन ने थानेश्वर में की थी। 

    इन्होंने गुप्तों के बाद उत्तर भारत में सबसे विशाल राजवंश की स्थापना की।  

    इस वंश का पाँचवा और शक्तिशाली राजा प्रभाकरनवर्धन हुआ था। उसकी उपाधि ‘परम भट्टारक महाराजाधिराज’ थी।

    बाणभट्ट द्वारा रचित ‘हर्षचरित’ से पता चलता है कि इस शासक ने सिंध, गुजरात और मालवा पर अधिकार कर लिया था। राजा प्रभाकरवर्धन के दो पुत्र राज्यवर्धन, हर्षवर्धन और एक पुत्री राज्यश्री थी। राज्यश्री का विवाह कन्नौज के मौखरी वंश के शासक गृहवर्मन से हुआ था।

    हेनसांग तथा आर्य मंजुश्रीमूलकल्प के अनुसार वर्धन वंश (पुष्यभूति वंश) वैश्य जाति का था। पुष्यभूति वंश में तीन प्रसिद्ध शासक हुए प्रभाकर वर्धन और उसके दो पुत्र राज्यवर्धन और हर्षवर्धन।

    हर्षचरित में प्रभाकर वर्धन को हूणहरिणकेसरी कहा है अथार्थ प्रभाकर वर्धन हूण रूपी हिरण के लिए सिंह के समान थे। सर्वप्रथम प्रभाकर वर्धन नहीं इस वंश में हूणों को परास्त किया।

    राज्यवर्धन की गौड़ के राजा शशांक ने हत्या कर दी। हर्ष को कुन्तल नामक दूत द्वारा अपने भाई राज्यवर्धन की हत्या का समाचार मिला। हर्षचरित में लिखा है कि हर्ष ने यह प्रतिज्ञा ली कि मैं कुछ दिनों के भीतर ही पृथ्वी को गौड़ विहीन न कर दूं तो पतंगे की जलती हुई चिता में प्रवेश कर अपने प्राण दे दूंगा।

    Vardhan VanshVardhan Vansh

    हर्ष का प्रशासन

    अधिकारी कार्य

    1 अवंति – युद्ध और शांति का अधिकारी,विदेश मंत्री
    2.सिंहनाद – सेनापति
    3.कुंतल – अश्वसेना का प्रधान
    4 स्कंदगुप्त – हस्ति सेना का प्रधान
    5 भणडी- प्रधान सचिव

    चाट और भाट पुलिस अधिकारी थे हर्ष के प्रशासन व पदाधिकारियों के नाम बंशखेड़ा अभिलेख में मिलते हैं

    यदि आपको Vardhan Vansh के बारे में जानकारी पसंद आई हो तो हमे facebook पर जरूर फॉलो करे और अपने दोस्तों के साथ शेयर जरूर करें और हमें कमेंट्स बॉक्स जरूर बताएं धन्यवाद । । । ।

    Vardhan Vansh हर्ष का प्रशासन हेनसांग तथा आर्य मंजुश्रीमूलकल्प
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