NATO क्या है ? | कैसे हुई नाटो की स्थापना ? – इस लेख के माध्यम से NATO क्या है ?,कैसे हुई नाटो की स्थापना ?, नाटो की स्थापना क्यों की गई?, नाटो के कितने सदस्य हैं?,नाटो के गठन के उद्देश्य,नाटो की संरचना,क्या रूस नाटो का सदस्य है?, आदि इन तमाम मुद्दों पर इस लेख में आपको पूरी जानकारी दी जाएगी !
इसलिए इस लेख को अंत तक पढ़े !
NATO क्या है ? | कैसे हुई नाटो की स्थापना ?
जब विश्व युद्ध (World War) की समाप्ती हुई तो दुनिया के बहुत सारे देशों को गहरा जान और माल का नुक्सान झेलना पड़ा।
ऐसे में सभी देश चिंतित थे कि ऐसी कोई घटना फिर कभी ना हो। इसी समस्या के हल के लिए नाटो (NATO) का निर्माण हुआ जिसमें बहुत सारे देशों ने अपने सैन्य बल को सांझा किया।
आज के समय में दुनिया का सबसे बड़ा सैन्य गठबंधन संगठन नाटो है। नाटो के अंतर्गत जो भी देश नाटो के नियमों की पालन नहीं करता उसपर कठोर करवाई की जाती है।
नाटो उस समय और भी चर्चा में आ गया जब रूस और उक्रेन के बीच युद्ध की बातें सामने आने लगीं। इस लेख में हम आपको नाटो के बारे में सारी जानकारी प्रदान करेंगे।
नाटो विश्व का सबसे बड़ा सैन्य संगठन है जिसके अंतर्गत एक देश दूसरे देश में अपनी सेना भेजता है और उन्हें अंतर्राष्ट्रीय ट्रेनिंग भी दी जाती है।
साथ ही साथ यह आदेश भी दिया जाता है कि वह हर स्थिति को सख्ती से निपटाएं। नाटो की शुरुआत दूसरे विश्व युद्ध के बाद 4 अप्रैल 1949 में की गई।
NATO क्या है ? | कैसे हुई नाटो की स्थापना ? आईए इस के बारे में विस्तार से जानते हैं
हिंदी भाषा में नाटो को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन के नाम से जाना जाता है। नाटो का दूसरा नाम अटलांटिक अलायन्स भी है।
मुख्य रूप से नाटो का उद्देश्य विश्व में शांति को कायम रखना है। आज के समय में नाटो के 30 सदस्य हैं।
नाटो की स्थापना क्यों की गई?
रूस के हमलों से बचने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1949 में उत्तरी अमेरिका और यूरोप के 12 सदस्यों के साथ नाटो की स्थापना की गई थी. नाटो चार्टर का अनुच्छेद 5 केवल सदस्य देशों को सुरक्षा देने के लिए नाटो को हमले की इजाजत देता है.
नाटो के कितने सदस्य हैं?
वर्ष 1945 में जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ तो अमेरिका और सोवियत संघ एक महा शक्ति के रूप में उभर कर आए जिसके कारण यूरोप में खतरे की संभावना बढ़ गई थी।
इस समस्या को देखते हुए फ्रांस, ब्रिटेन, नीदरलैंड, बेल्जियम जैसे कई देशों ने यह संधि की कि अगर किसी देश पर हमला होता है तो दूसरे देश उस देश को सैन्य सहायता प्रदान करेंगे और साथ ही साथ उन्हें आर्थिक और सामाजिक तौर पर भी सहायता देंगे।
अपने आप को शक्तिशाली साबित करने के लिए बाद में अमेरिका सोवियत संघ की घेराबंदी करने लगा जिससे उसके प्रभाव को समाप्त किया जा सके।
इसी कारण से अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के अनुच्छेद 15 के तहत उत्तर अटलांटिक संधि के प्रस्ताव की पेशकश की जिसपर दुनिया के 12 अलग अलग देशों ने हस्ताक्षर किये।
इस संधि में अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, बेल्जियम, आइसलैंड, लक्जमबर्ग, फ्रांस, कनाडा और इटली जैसे कई देश शामिल थे।
बाद में शीत युद्ध से कुछ समय पहले स्पेन, पश्चिम जर्मनी, टर्की और यूनान ने इसकी सदस्य्ता लेली। शीत युद्ध के समाप्त होने के बाद हंगरी, पोलैंड और चेक गणराज्य देशों को भी इस संधि में शामिल किया गया। इसके अलावा
वर्ष 2004 में 7 और देशों ने इसकी सदस्य्ता ली और आज के समय में नाटो के कुल 30 सदस्य हैं। इस समूह में निम्न बताए सभी देश शामिल हैं:-
- Albania
- Belgium
- Bulgaria
- Canada
- Croatia
- Czech Republic
- Denmark
- Estonia
- France
- Germany
- Greece
- Hungary
- Iceland
- Italy
- Latvia
- Lithuania
- Luxembourg
- Montenegro
- Netherlands
- North Macedonia
- Norway
- Poland
- Portugal
- Romania
- Slovakia
- Slovenia
- Spain
- Turkey
- United Kingdom
- United स्टेट्स
कैसे हुई नाटो की स्थापना ?
जब दूसरा विश्व युद्ध ख़तम हुआ तो पूरे यूरोप की आर्थिक स्थिति में गिरावट दर्ज की गई जिसके कारण वहां रह रहे नागरिकों का दैनिक जीवन निम्न स्तर पर आ चूका था।
इसी का लाभ प्राप्त करने के लिए सोवियत संघ ने ग्रीस और तुर्की में साम्यवाद की स्थापना करके पूरे विश्व के कारोबार पर अपना नियंत्रण करना चाहा और इन देशों पर अपना प्रभाव डालना चाहा।
उस समय अगर सोवियत संघ तुर्की पर विजय प्राप्त कर लेता तो उसका नियंत्रण काला सागर पर भी हो जाता और इसके लाभ के रूप में वह आसपास के सभी देशों पर साम्यवाद की स्थापना कर सकता था। इसके साथ ही वह ग्रीस को भी अपने नियंत्रण में ले लेना चाहता था।
इस प्रकार से वह भूमध्य सागर के द्वारा किये जाने वाले व्यापार पर भी अपना असर डाल सकता था। सोवियत संघ की यह सोच काफी विस्तारवादी थी जिसे अमेरिका ने अच्छी तरह से आंक लिया था।
इन्हीं कुछ समस्याओं के निवारण के लिए नाटो की स्थापना हुई। आपको बता दें कि उस समय अमेरिका के राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डेलानो रूज़वेल्ट का किसी वजह से निधन हो गया जिसके पश्चात हैरी एस ट्रूमैन को राष्ट्रपति के रूप में चुना गया।
नाटो के गठन के उद्देश्य
पश्चिमी यूरोप के देशों को एक सूत्र में संगठित करना नाटो के मुख्य उद्देश्यों में से एक है।सैन्य और आर्थिक विकास के लिए अपने कार्यक्रमों के द्वारा द्वारा यूरोपीय राष्ट्रों के लिए सुरक्षा प्रदान करना
यूरोप पर आक्रमण के समय एक अवरोधक के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाना।युद्ध की स्थिति में लोगों को मानसिक रूप से तैयार करना और पश्चिमी यूरोप में सोवियत संघ के विस्तार को रोकना।
स्वतंत्र विश्व’ की रक्षा के लिए सदस्य देशों को आर्थिक और सामाजिक रूप से सहायता प्रदान करना।
नाटो की संरचना
मुख्य रूप से नाटो की संरचना चार अंगों से मिलकर बनी है और यही संरचना नाटो को ख़ास बनाती है। नाटो के यह अंग कुछ इस प्रकार हैं:-
परिषद – यह नाटो का सबसे उच्च स्तरीय अंग है। जिसका निर्माण राज्य के मंत्रियों से मिलकर होता है और इस मंत्रिस्तरीय की बैठक वर्ष में एक बार होती है।
उप परिषद – नाटो के इस अंग में नाटो से सम्बद्ध सामान्य हितों वाले विषयों पर चर्चा की जाती है। यह परिषद द्वारा नियुक्त कूटनीतिक प्रतिनिधियों की परिषद से मिलकर बना है।
प्रतिरक्षा समिति – इस अंग में सदस्य देशों के प्रतिरक्षा मंत्रियों को शामिल किया जाता है। इसका मुख्य कार्य प्रतिरक्षा रणनीति तथा नाटो एवं गैर नाटो देशों में सैन्य सम्बन्धी विषयों पर विचार विमर्श करना है।
सैनिक समिति – यह भी नाटो का एक मुख्य अंग है और इसका कार्य परिषद् एवं उसकी प्रतिरक्षा समिति को सलाह देना होता है। इसमें सभी सदस्य देशों के सेनाध्यक्ष शामिल होते हैं और विश्व की शांति पर विचार विमर्श करते हैं।
ट्रूमैन सिद्धांत (Truman Doctrine in Hindi)
शीत युद्ध के समय पर अमेरिका ने सोवियत संघ का विस्तार रोकने के लिए एक प्रस्ताव रखा जिसे ट्रूमैन सिद्धांत भी कहते हैं।
इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य सोवियत संघ के विस्तार को रोकने के साथ साथ सभी यूरोपीय देशों की मदद करना भी था। इस प्रस्ताव के अंतर्गत उन सभी देशों की सहायता की जाती थी जिन्हें साम्यवाद से खतरा था।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नाटो संगठन को अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी एस ट्रूमैन द्वारा ही संकलित किया गया था।
इस समूह में वह सारे ही देश शामिल थे जिन्हें साम्यवाद से खतरा था और जो लोकतंत्र को बचाने में पूरा विश्वास रखते थे। नाटो के तहत उन सभी देशों की सुरक्षा का ख्याल रखा जाएगा जो इस संगठन में शामिल हैं।
संगठन में शामिल उन सभी देशों का मानना था कि अगर किसी सदस्य देश पर हमला होता है तो यह हमला उस संगठन पर होगा और सभी देश मिलकर उसका सामना करेंगे।
आपको बता दें कि मार्शल स्कीम के तहत ही तुर्की और ग्रीस को लगभग 400 मिलियन डॉलर्स की सहायता प्राप्त हुई। यह एक ऐसी नीति थी जिसकी वजह से अमेरिका और सोवियत संघ के बीच लंबे समय तक युद्ध चला। इस प्रकार से नाटो का गठन किया गया।
नाटो का महासचिव
आज के समय में नाटो के महासचिव नॉर्वे देश के पूर्व प्रधान मंत्री Jens Stoltenberg हैं जिन्होंने 1 अक्टूबर 2014 को अपना पदाभार संभाला और बाद में महासचिव के रूप में स्टोल्टेनबर्ग के मिशन को एक और चार साल के लिए बढ़ा दिया गया था जिसका अर्थ है वह 30 सितंबर, 2022 तक नाटो के महासचिव रहेंगे।
नाटो का मुख्यालय
आपको बता दें कि बड़े बड़े संगठनों का मुख्यालय जरूर होता है और नाटो का भी मुख्यालय है। असल में नाटो का मुखयलय यानी हेड क्वार्टर बेल्जियम की राजधानी ब्रूसेल्स में स्थित है।
नाटो के क्या प्रभाव हुए
नाटो के गठन के बाद बहुत सारे देशों पर नाटो के विभिन्न प्रभाव पड़े जिसमें से कुछ निम्न बताने जा रहे हैं:-
नाटो के गठन के बाद अमेरिकी अलगाववाद की समाप्ति हो गई और अब यूरोपियन मुद्दों पर तथस्ट नहीं रहा जा सकता था।अमेरिकी विदेश नीति पर भी नाटो का काफी प्रभाव पड़ा।दूसरे विश्व युद्ध के पश्चात जीर्ण-शीर्ण यूरोपियन देशों को सुरक्षा प्रदान की गई जिससे वह बिना किसी डर के आर्थिक और सैन्य कार्यों को पूरा कर सकें।
विश्व के इतिहास में पहली बार पश्चिमी यूरोपियन शक्तियों ने अंतर्राष्ट्रीय सैन्य संगठन की अधीनता में अपनी कुछ सेनाओं को रखना स्वीकार किया।नाटो के गठन ने शीत युद्ध को बढ़ावा दिया जिसके कारण सोवियत संघ ने इसे साम्यवाद के विरोध के रूप में लिया और जवाब में वारसॉ संधि नामक एक सैन्य संगठन की पेशकश करके पूर्वी यूरोपीय देशों में अपना प्रभाव कायम करने की कोशिश की।नाटो का महासचिव
नाटो का फुल फॉर्म क्या है?
नाटो का फुल फॉर्म North Atlantic Treaty Organization (नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन) है और इसे अटलांटिक अलायन्स के नाम से भी जाना जाता है। हिंदी में नाटो को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन कहा जाता है।
क्या रूस नाटो का सदस्य है?
हालांकि, यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने को लेकर कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। यदि यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो मौजूदा स्थिति के अनुसार नाटो की सेनाएं यूक्रेन की सीमाओं पर स्थायी मौजूदगी हो जाएगी। वहीं, रूस नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो। एस्टोनिया और लातविया नाटो के सदस्य हैं।
रूस ने यूक्रेन पर हमला क्यों किया?
अब हम उन कारणों की बात करते हैं जिसकी वजह से रूस को यूक्रेन पर हमले का कदम उठाना पड़ा है। इसकी सबसे बड़ी वजह अमेरिका द्वारा यूक्रेन को नाटो संगठन में शामिल करने की कवायद है। अमेरिका के वर्चस्व वाले इस संगठन में 30 देश शामिल हैं जिनमें से अधिकतर यूरोप के ही हैं। हालांकि इसमें सबसे अधिक जवान अमेरिका के ही हैं।
क्या रूस नाटो का सदस्य है?
हालांकि, यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने को लेकर कोई अंतिम फैसला नहीं किया है। यदि यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो मौजूदा स्थिति के अनुसार नाटो की सेनाएं यूक्रेन की सीमाओं पर स्थायी मौजूदगी हो जाएगी। वहीं, रूस नहीं चाहता है कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो। एस्टोनिया और लातविया नाटो के सदस्य हैं।
नाटो क्या है in Hindi?
नाटो कुछ देशों का एक इंटरगवर्नेंट मिलिट्री संगठन है. इसका मकसद साझा सुरक्षा नीति पर काम करना है. जैसे मान लीजिए अगर किसी नाटो देश पर कोई दूसरा देश हमला करता है तो पूरे नाटो के देश प्रभावित देश के साथ खड़े हो जाते हैं और उसकी मदद करते हैं.
इसका पूरा नाम नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (NATO) है.नाटो में कौन कौन से देश हैं?1948 में बर्लिन को भी घेर लिया। इसके बाद अमेरिका ने सोवियत संघ की विस्तारवादी नीति को रोकने के लिए 1949 में नाटो की स्थापना की।
नाटो बना, तब इसके 12 सदस्य देश थे। अमेरिका के अलावा ब्रिटेन, फ्रांस, कनाडा, इटली, नीदरलैंड, आइसलैंड, बेल्जियम, लक्जमबर्ग, नॉर्वे, पुर्तगाल और डेनमार्क।
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संक्षेप में
NATO क्या है ? | कैसे हुई नाटो की स्थापना ? – इस लेख के माध्यम से NATO क्या है ?,कैसे हुई नाटो की स्थापना ?, नाटो की स्थापना क्यों की गई?, नाटो के कितने सदस्य हैं?,नाटो के गठन के उद्देश्य,नाटो की संरचना,क्या रूस नाटो का सदस्य है?, आदि इन तमाम मुद्दों पर इस लेख में आपको पूरी जानकारी दी गयी हैं