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    Home»Political Science»Marley-Minto 1909: मार्ले-मिण्टो सुधार 1909
    Political Science

    Marley-Minto 1909: मार्ले-मिण्टो सुधार 1909

    By NARESH BHABLAAugust 26, 2020Updated:May 28, 2021No Comments6 Mins Read
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    Marley-Minto
    Marley-Minto
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    Marley-Minto 1909

    Marley-Minto (मार्ले-मिण्टो सुधार 1909)

    बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशक में 1909 का Marley-Minto सुधार अधिनियम वास्तविक अर्थों में भारत में संवैधानिक सुधार की दिशा में माना गया। जिसको तैयार करने में प्रमुख उदारवादी नेता गोपाल कृष्ण गोखले का सहयोग लिया गया । इस अधिनियम के अंतर्गत गवर्नर जनरल की विधायी परिषद में सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ाकर 60 कर दी गई। इसमें तीन प्रकार के सदस्य

    • मनोनीत सरकारी सदस्य मनोनीत
    • गैर सरकारी सदस्य
    • निर्वाचित सदस्य

    Marley-MintoMarley-Minto

    भारत परिषद अधिनियम 1909 (Indian Councils Act 1909)

    Marley-Minto सुधार भारत परिषद अधिनियम 1909 (Indian Councils Act 1909) को Marley-Minto सुधारों के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इस समय मार्ले भारत सचिव एवं लार्ड मिन्टो वायसराय थे।इन्हीं दोनों के नाम पर इसे Marley-Minto सुधारों की संज्ञा दी गयी।

    सरकार द्वारा इन सुधारों को प्रस्तुत करने के पीछे मुख्य दो घटनाये थीं।

    • 1. अक्टूबर 1906 में आगा खां के नेतृत्व में एक मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल वायसराय लार्ड मिन्टो से मिला और मांग की कि मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की जाए
    • 2. तथा मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व दिया जाये। प्रतिनिधिमंडल ने तर्क दिया कि ‘उनकी साम्राज्य की सेवा’ के लिए उन्हें पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व दिया जाये

    1906 में ढाका में नवाब सलीमुल्लाह, नवाब मोहसिन-उल-मुल्क और वकार-उल-मुल्क द्वारा मुस्लिम लीग की स्थापना की गयी थी। लार्ड मिन्टो से मिलने वाला यह प्रतिनिधिमंडल शीघ्र ही मुस्लिम लीग में सम्मिलित हो गया।

    मुस्लिम लीग ने मुसलमानों को साम्राज्य के प्रति निष्ठा प्रकट करने की शिक्षा दी तथा मुस्लिम बुद्धिजीवियों को कांग्रेस से पृथक रखने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त कांग्रेस द्वारा प्रतिवर्ष सुधारों की मांग करने,नरम दल को संतुष्ट करने, अतिवादियों के प्रभाव को कम करने तथा क्रांतिकारी राष्ट्रवाद को रोकने के लिये भी सुधार किया जाना आवश्यक हो गया था

    मुख्य सुधारः 1909 के Marley-Minto सुधारों की मुख्य धारायें इस प्रकार थीं-इस अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या में वृद्धि कर दी गयी।

    प्रांतीय विधान परिषदों में गैर-सरकारी बहुमत स्थापित किया गया। किंतु गैर-सरकारी सदस्यों में नामांकित एवं बिना चुने सदस्यों की संख्या अधिक थी, जिसके कारण निर्वाचित सदस्यों की तुलना में अभी भी उनकी संख्या अधिक बनीरही। सुमित सरकार के अनुसार, केंद्रीय व्यवस्थापिका सभा में 60 सदस्य और 9 पदेन सदस्य होते थे।

    इन 69 सदस्यों में से 37 सरकारी अधिकारीऔर 32 गैर-सरकारी सदस्य थे। 32 गैर-सरकारी सदस्यों में से 5 नामजद एवं 27 चुने हुये सदस्य थे। निर्वाचित 27 सदस्यों में से 8 सीटें पृथक् निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत मुस्लिमों के लिए आरक्षित थीं, ; जबकि 4 सीटें ब्रिटिश पूंजीपतियों के लिए तथा 2 सीटें जमींदारों के लिए आरक्षित थीं और 13 सीटें सामान्य निर्वाचन के अंतर्गत आती थीं।

    निर्वाचित सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुने जाते थे। स्थानीय निकायों से निर्वाचन परिषद का गठन होता था।  ये प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों का निर्वाचन करती करते थे। प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्य केन्द्रीय व्यवस्थापिका के सदस्तों का निर्वाचन करते थे।

    इस अधिनियम द्वारा मुसलमानों के लिये पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली लागू की गयी। साथ ही मुसलमानों को प्रतिनिधित्व के मामले में विशेष रियायत दी गयी। उन्हें केंद्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषद में जनसंख्या के अनुपात में अधिक प्रतिनिधि भेजने का अधिकार दिया गया।

    मुस्लिम मतदाताओं के लिये आय की योग्यता को भी हिन्दुओं की तुलना में कम रखा गया। व्यवस्थापिका सभाओं के अधिकारों में वृद्धि की गयी। सदस्यों को आर्थिक प्रस्तावों पर बहस करने, उनके विषयों में संशोधन प्रस्ताव रखने, उनको कुछ विषयों पर मतदान करने, प्रश्न पूछने, साधारण प्रश्नों पर मतदान करने, साधारण प्रश्नों पर बहस करने तथा सार्वजनिक हित के प्रस्तावों को प्रस्तुत करने का अधिकार दिया गया।

    व्यवस्थापिकाओं को इतने अधिकार देने के पश्चात भी गवर्नर जनरल तथा गवर्नरों को व्यवस्थापिकाओं में प्रस्तावों को ठुकराने का अधिकार था।गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी। पहले भारतीय सदस्य के रूप में सत्येंद्र सिन्हा को नियुक्त किया गया। सुधार की समीक्षा 1909 के सुधारों से भारतीय राजनैतिक प्रश्न का न कोई हल हो सकता था न ही इससे वह निकला।

    अप्रत्यक्ष चुनाव, सीमित मताधिकार तथा विधान परिषद की सीमित शक्तियों ने प्रतिनिधि सरकार को मिश्रण सा बना दिया। लार्ड मार्ले ने स्पष्ट तौर पर कहा कि भारत स्वशासन के योग्य नहीं है। कांग्रेस द्वारा प्रतिवर्ष स्वशासन की मांग करने के पश्चात भी मार्ले ने स्पष्ट तौर पर उसे ठुकरा दिया। उसने भारत में संसदीय शासन व्यवस्था या उत्तरदायी सरकार की स्थापना का स्पष्ट विरोध किया।

    उसने कहा ‘यदि यह कहा जाये कि सुधारों के इस अध्याय से भारत में सीधे अथवा अवश्यंभावी संसदीय व्यवस्था स्थापित करने अथवा होने में सहायता मिलेगी तो मेरा इससे कोई संबंध नहीं होगा’

    वास्तव में 1909 के सुधारों का मुख्य उद्देश्य उदारवादियों को दिग्भ्रमित कर राष्ट्रवादी दल में फूट डालना तथा साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को अपना कर राष्ट्रीय एकता को विनष्ट करना था। सरकार इन सुधारों द्वारा नरमपंथियों एवंमुसलमानों को लालच देकर राष्ट्रवाद के उफान को रोकना चाहता थी।

    सरकार एवं मुस्लिम नेताओं ने जब भी द्विपक्षीय वार्ता की, उसका मुख्य विषय पृथक निर्वाचन प्रणाली ही रहा किंतु वास्तव में इस व्यवस्था से मुसलमानों का छोटा वर्ग ही लाभान्वितहो सका।इस अधिनियम के अंतर्गत जो पद्धति अपनाई गयी वह इतनी अस्पष्ट थी कि जन प्रतिनिधित्व प्रणाली एक प्रकार की बहुत सी छन्नियों में से छानने की क्रिया बन गयी।

    कुछ लोग स्थानीय निकायों का चुनाव करते थे, ये सदस्य चुनाव मण्डलों का चुनाव करते थे और ये चुनाव मण्डल प्रांतीय परिषदों के सदस्यों का चुनाव करते थेऔर यही प्रांतीय परिषदों के सदस्य केंद्रीय परिषद के सदस्यों का चुनाव करते थे। सुधारों को कार्यान्वित करते हुये बहुत सी गड़बड़ियां उत्पन्न हो गयीं। संसदीय प्रणाली तो दे दी गयी

    परंतु उत्तरदायित्व नहीं दिया गया, जिससे भारतीय नेताओं ने विधान मण्डलों को सरकार की कटु आलोचना करने का मंच बना लिया।  केवल गोपाल कृष्ण गोखले जैसे कुछ भारतीय नेता ही इस अवसर का वास्तविक उपयोग कर सके। उन्होंने सभी के लिये प्राथमिक शिक्षा, सरकार की दमनकारी नीतियों की आलोचना तथा दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों परहो रहे अत्याचार जैसे मुद्दों को उठाकर इस मंच का सही अर्थों में उपयोग किया।

    यद्यपि इस अधिनियम द्वारा चुनाव प्रणाली के सिद्धांत को भारत में पहली बार मान्यता मिली, गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद् में पहली बार भारतीयों को प्रतिनिधित्व मिला तथा केन्द्रीय एवं प्रांतीय विधान परिषदों के सदस्यों को कुछ सिमित अधिकार प्रदान किए गए किन्तु अधिनियम की औसत उपलब्धियां नगण्य ही रहीं। 1909 के सुधारों से जनता को केवल ‘नाममात्र’ सुधार ही प्राप्त हुये, वास्तविक रूप से कुछ नहीं।इससे प्रभाव तो मिला पर शक्ति नहीं। शासन का उत्तरदायित्व अन्य वर्ग को और शक्ति अन्य वर्ग को सौंप दी।

    1909 के सुधारों से जनता ने कुछ और ही चाहा था उन्हें कुछ और ही मिला। भारतीयों ने स्वशासन की मांग की तथा उन्हें ‘हितवादी निरंकुशता’ सौंप दी गयी। इन सुधारों के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा ‘मार्ले-मिन्टो सुधारों ने हमारा सर्वनाश कर दिया’।

    1909 इंडियन काउंसिल एक्ट में किस बात की व्यवस्था की गई थी 1909 के अधिनियम को विस्तार से समझाइये 1909 के मार्ले मिंटो सुधार अधिनियम के दोषों का परीक्षण करें मार्ले मिंटो सुधार का उद्देश्य क्या था मार्ले मिंटो सुधार किस अधिनियम को कहा जाता है मार्ले मिंटो सुधार बिल किस वर्ष में पारित किया गया मिन्टो मार्ले सुधार का उद्देश्य क्या था साम्प्रदायिक निर्वाचन का जनक
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