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    Home»Political Science»Local government in India: भारत में स्थानीय स्वशासन
    Political Science

    Local government in India: भारत में स्थानीय स्वशासन

    By NARESH BHABLASeptember 3, 2020Updated:May 21, 2021No Comments5 Mins Read
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    Local government in India

    Page Contents

    • Local government in India (भारत में स्थानीय स्वशासन)
      • (1) ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्र।
        • ग्रामीण स्थानीय
        • (1) बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
        • (2) परमादेश रिट (Mandamus)
        • (3) प्रतिषेध रिट (Prohibition)-
        • (4) उत्प्रेषण लेख (Writ of Certiorari)-
        • (5) अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

    Local government in India (भारत में स्थानीय स्वशासन)

    ‘स्थानीय स्वशासन एक ऐसा शासन है, जो अपने सीमित क्षेत्र में प्रदत्त अधिकारों का उपयोग करता हो।’’ -जी. डी. एच कोल

    भारत एक विशाल जनसंख्या वाला लोक तांत्रिक देश है।  लोकतंत्र की मूलभूत मान्यता है कि सर्वोच्च शक्ति जनता में होनी चाहिए । सभी ब्यिकृ इस व्यवस्था से प्रत्यक्षत: जुडंकर शासन कार्य से सम्बद्ध हो सके

    इस प्रकार का अवसर स्थानीय स्वशासन ब्यवस्था द्वारा संभव हो सकता है। स्थानीय स्वशासन जनता द्वारा शासन स्थानीय स्वशासन कहलाता है। स्थानीय स्वशासन के दो क्षत्रे है।

    Local governmentLocal government

    (1) ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्र।

    पंचायती राज ग्रामीण व्यवस्था एवं नगरपालिका नगरीय व्यवस्था को कहा जाता है ।

    स्थानीय स्वशासन

    1. ग्रामीण क्षेत्र
    2. नगरीय क्षेत्र

    ग्रामं पंचायत
    जनपद पंचायत
    जिला पंचायत

    नगर निगम नगर पालिका नगर पंचायत

    ग्रामीण स्थानीय

    • स्वशासन भारत में प्राचीन काल से ही भिन्न-भिन्न नामों से पंचायती राज व्यवस्थाअस्तित्व में रही है।
    • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी जी के प्रभाव से पंचायती राज व्यवस्था पर ज्यादा जोर दिया गया।
    • 1993 में 73 वां संविधान संशोधन करके पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक मान्यता देवी गर्इ है।

    1. पंचायत व्यवस्था के अंतर्गत सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होगी। इसमें एक या एक से अधिक गाँव शामिल किये जा सकते है।

    2. ग्राम पंचायत कर शाक्तियों के सम्बन्ध में राज्य विधान मंडल द्वारा कानून बनाया जायेगा । जिन राज्यों की जनसंख्या 20लाख से कम है वहॉ दो स्तरीय पंचायत (जिला व ग्राम ) का गठन किय जावेगा

    3. सभी स्तरों की पंचायतो के सभी सदस्यों का चुनाव ‘वयस्क मताधिकार’ के आधार पर पांच वर्ष के लिए किया जायेगा।

    4. ग्राम स्तर के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्षत: तथा जनपद व जिला स्तरके अध् यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्षरूप से किया जायेगा ।

    5. पंचायत के सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए उनके सख्या के अनुपात में आरक्षण दियाजायेगा ।

    6. महिलाओं को 30 प्रतिशत आरक्षण दिया जायेगा ।

    7. पांच वर्ष के कार्य काल के पूर्व भी इनका (पंचायतो का) विघटन किया जा सकता है। परन्तु विघटन की दशा में 6 माह के अंतर्गत चुनाव कराना आवश्यकता होगा।

    संवैधानिक उपचारों सम्बन्धी मूलाधिकार का प्रावधान अनुच्छेद 32-35 तक किया गया है संविधान के भाग तीन में मूल अधिकारों का वर्णन है.

     यदि मूल अधिकारों का राज्य द्वारा उल्लंघन किया जाता है तो राज्य के विरुद्ध न्याय पाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में और अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में रिट (writ) याचिका दाखिल करने अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है.

    संविधान में निम्नलिखित आदेशों का उल्लेख (Types of Writs issued by Courts) है –

    • बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
    • परमादेश रिट (Mandamus)
    • प्रतिषेध रिट (Prohibition)
    • उत्प्रेषण लेख (Writ of Certaiorari)
    • अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

    (1) बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)

    • यह रिट (writ) उस अधिकारी (authority) के विरुद्ध दायर किया जाता है जो किसी व्यक्ति को बंदी बनाकर (detained) रखता है.
    • इस रिट (writ) को जारी करके कैद करने वाले अधिकारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय (court) में पेश करे.
    • इस रिट (writ) का उद्देश्य मूल अधिकार में दिए गए “दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार” का अनुपालन करना है.
    • यह रिट अवैध बंदीकरण के विरुद्ध प्रभावी कानूनी राहत प्रदान करता है.

    (2) परमादेश रिट (Mandamus)

    • यह रिट (writ) न्यायालय द्वारा उस समय जारी किया जाता है, जब कोई लोक अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहण से इनकार करे और जिसके लिए कोई अन्य विधिक उपचार (कोई कानूनी रास्ता न हो) प्राप्त न हो.
    • इस रिट के द्वारा किसी लोक पद के अधिकारी के अतिरिक्त अधीनस्थ न्यायालय अथवा निगम के अधिकारी को भी यह आदेश दिया जा सकता है कि वह उसे सौंपे गए कर्तव्य का पालन सुनिश्चित करे.

    (3) प्रतिषेध रिट (Prohibition)-

    • यह रिट (writ) किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है.
    • इस रिट (writ) को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपनी अधिकारिता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है.
    • इस रिट के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को किसी मामले में तुरंत कार्रवाई करने तथा की गई कार्रवाई की सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया जाता है.

    (4) उत्प्रेषण लेख (Writ of Certiorari)-

    • यह रिट (writ) भी अधीनस्थ न्यायालयों (sub-ordinate courts) के विरुद्ध जारी किया जाता है.
    • इस रिट (writ) को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास संचित मुकदमे के निर्णय लेने के लिए उस मुकदमे को वरिष्ठ न्यायालय अथवा उच्चतर न्यायालय को भेजें.
    • उत्प्रेषण लेख का मतलब उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय में चल रहे किसी मुक़दमे के प्रलेख (documents) की समीक्षा (review) मात्र है, इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ही हो.

    (5) अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)

    •  इस रिट (writ) को उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी ऐसे लोक पद (public post) को धारण करता है जिसे धारण करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है.
    • इस रिट (writ) द्वारा न्यायालय लोकपद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जाँच करता है.
    • यदि उसका दावा निराधार (not well-founded) है तो वह उसे पद से निष्कासन कर देता है.
    • इस रिट के माध्यम से किसी लोक पदधारी को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश देने से रोका जाता है.

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