Indian Gov Act 1935
Indian Gov Act 1935 (भारतीय शासन अधिनियम)
1920 में भारत के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन और 1920-30 की अवधि में स्वराज्य दल का उदय। भारत में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के दूसरे चरण का उदय, साइमन कमीशन का आगमन, नेहरू कमेटी, जिन्ना की 14 सूत्री योजना, 3 गोलमेज सम्मेलनों का आयोजन।
1935 में श्वेत पत्र का प्रकाशन लॉर्ड लिनलिथगो की अध्यक्षता में एक समिति का गठन जिनके सुझाव पर 1935 का भारत शासन अधिनियम आधारित है। यह अधिनियम भारत में पूर्ण उत्तरदायी सरकार के गठन में एक मील का पत्थर साबित हुआ जिसमें 310 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी।
इस अधिनियम में जो विस्तृत था वह भारत के लिए एक संघीय योजना का प्रावधान। इस अधिनियम के अंतर्गत प्रांतों से द्वैध शासन को समाप्त करके उसे हर केंद्र में लागू किया गया केंद्र में आरक्षित विषयों में विदेश प्रतिरक्षा कबाली क्षेत्र जनजाति क्षेत्र गवर्नर जनरल के हाथों में सौंप दिया गया।
इस एक्ट में विषयों का तीन भागों में विभाजित किया गया
- संघ सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची
भारत के लिए संघीय न्यायालय कोर्ट का प्रावधान किया गया। जिसमें प्रारंभिक अपीलीय और परामर्श कार्य क्षेत्र अधिकार दिए गए। कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध अपील प्रिवी कौंसिल में करने का प्रावधान था। 1935 का अधिनियम 1 अप्रैल 1937 से लागू हुआ परंतु इसकी संघीय योजना में उत्तरदायी का अभाव होने के कारण इसकी क्रियान्विति नहीं की जा सकी।
नेहरू ने – इस अधिनियम को दासता का अधिकार पत्र का तथा जिन्ना ने पूर्णतया सड़ी-गली वस्तु का कहा।
1937 में इस अधिनियम के आधार पर संपन्न हुए चुनाव में कांग्रेस दल के अधिकारियों ने मंत्रिमंडल का निर्माण किया। परंतु 1939 में दूसरे विश्व युद्ध में मंत्रिमंडल की पूर्णतः स्वीकृति के बिना भारत की ओर से युद्ध में शामिल होने की घोषणा की। इस प्रतिक्रिया में मंत्रिमंडल ने त्यागपत्र दे दिया।
यह अधिनियम भारत में पूर्ण उत्तरदायी सरकार के गठन में एक मील का पत्थर साबित हुआ। यह एक लंबा और विस्तृत दस्तावेज था, जिसने 321 धाराएं और 10 अनुसूचियां थी।
अधिनियम की विशेषताएं
1 इसने अखिल भारतीय संघ की स्थापना की, जिसमें राज्य और रियासतों को एक इकाई की तरह माना गया। अधिनियम में केंद्र और राज्यों के बीच तीन सूचियों– संघीय सूची (59 विषय), राज्य सूची (54 विषय), और समवर्ती सूची (दोनों के लिए 36 विषय) के आधार पर शक्तियों का बंटवारा कर दिया।
अवशिष्ट शक्तियां वायसराय को दे दी गई। हालांकि यह संघीय व्यवस्था कभी अस्तित्व में नहीं आई क्योंकि देशी रियासतों ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया था।
2 इसने प्रांतों में द्वैध शासन व्यवस्था समाप्त कर दी तथा प्रांतीय स्वायत्तता का शुभारंभ किया। राज्यों को अपने दायरे में रहकर स्वायत्त तरीके से तीन पृथक क्षेत्रों में शासन का अधिकार दिया गया। इसके अतिरिक्त अधिनियम ने राज्यों में उत्तरदाई सरकार की स्थापना की।
यानी गवर्नर को राज्य विधान परिषद के लिए उत्तरदायी मंत्रियों की सलाह पर काम करना आवश्यक था। यह व्यवस्था 1937 में शुरू की गई और 1939 में इसे समाप्त कर दिया गया।
3 इसमें केंद्र में द्वैध शासन प्रणाली का शुभारंभ किया। परिणामतः संघीय विषयों को स्थानांतरित और आरक्षित विषयों में विभक्त करना पड़ा।हालांकि यह प्रावधान कभी लागू नहीं हो सका।
4 इसने 11 राज्यों में से छः में द्विसदनीय व्यवस्था प्रारंभ की। इस प्रकार बंगाल, मुंबई, मद्रास, बिहार, संयुक्त प्रांत और असम में द्विसदनीय विधान परिषद और विधानसभा बन गई। हालांकि इन पर कई प्रकार के प्रतिबंध थे।
5 इसने दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए अलग से निर्वाचन की व्यवस्था कर सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व व्यवस्था का विस्तार किया।
6 इसने भारत शासन अधिनियम, 1858 द्वारा स्थापित भारत परिषद को समाप्त कर दिया। इंग्लैंड में भारत सचिव को सलाहकारों की टीम मिल गई।
7 इसने मताधिकार का विस्तार किया। लगभग 10% जनसंख्या को मत का अधिकार मिल गया। इसके अंतर्गत देश की मुद्रा और साख पर नियंत्रण के लिए भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई।
8 इसमें न केवल संघ लोक सेवा आयोग की स्थापना की बल्कि प्रांतीय सेवा आयोग और दो या अधिक राज्यों के लिए संयुक्त सेवा आयोग की स्थापना भी की। इसके तहत 1937 में संघीय न्यायालय की स्थापना हुई।
1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम
ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया. इस अधिनियम में 20 धाराएं थीं.
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं –
भारतीय शासन
- दो अधिराज्यों की स्थापना: 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगें
, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी. सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपा जाएगा. - भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी.
- संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएं संविधान का निर्माण नई कर लेतीं, तब तक वह विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगीं.
- भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगें.
- 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है तब तक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा.
- देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया. उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मलित होने और अपने भावी संबंधो का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई
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