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    Home»Science»Biotechnology and Genetic जैव-प्रौधोगिकी एवं आनुवांशिकीय
    Science

    Biotechnology and Genetic जैव-प्रौधोगिकी एवं आनुवांशिकीय

    By NARESH BHABLAApril 2, 2020Updated:October 6, 2020No Comments8 Mins Read
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    Page Contents

    • जैव-प्रौधोगिकी एवं आनुवांशिकीय-अभियांत्रिकी
    • जैव प्रौद्योगिकी ( Biotechnology )
      • जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग ( Use of Biotechnology )
        • पर्यावरण संरक्षण (Environment protection)
        • कृषि (Agriculture)
        • औधोगिक क्षेत्र (Industrial area)
      • भारत में जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र ( Area of ​​Biotechnology in India )
    • आनुवांशिकीय अभियांत्रिकी (Genetic engineering)
      • राष्ट्रीय उधानिकी अनुसंधान संस्थान (National Institute of Urology Research)

    जैव-प्रौधोगिकी एवं आनुवांशिकीय-अभियांत्रिकी

    जीवाणुओ छोटे जंतुओं पादपों की सहायता से वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रिया जैव प्रौद्योगिकी अथवा जैव तकनीक कहलाती है जैव प्रौद्योगिकी के दो रूप है।

    1⃣ अनुवांशिक जैव प्रौद्योगिकी
    2⃣ गैर अनुवांशिक प्रोधोगिकी

    इसके अंतगत मुख्य रूप से कोशिका एव उत्तक रोग,  प्रतिक्षण, एंजाइम विज्ञान, जैव अभियांत्रिक,  परखनली शिशु अंग’,  प्रत्यारोपण क्लोरीन विधाय आती है। भारत परमाणु अनुसन्धान केंद BARC द्वारा गामा किरणों का उपयोग करके विकसित कीए गए उच्च कोटि के लेग्मिन्स पौधे विकसित किए। कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण जिन अभियांत्रिक द्वारा नही करवाया जा सकता। स्थान परिवर्ती SNA खंडों कुदरती जिन की खोज बोरब्रा मैकलीन टांक ने की थी।

    जैव प्रौद्योगिकी ( Biotechnology )

    Biotechnology

    विज्ञान के नियमों तथा तकनीकों का उपयोग करके सजीव पदार्थों से मानव उपयोगी पदार्थों तथा सेवाओं का सृजन जैव प्रौद्योगिकी के अंतर्गत आता है। यह जीव विज्ञान तथा अभियांत्रिक का मिला जुला रूप है। मानव प्राचीन काल से ही किण्वन के माध्यम से शराब, पनीर तथा दही आदि का उत्पादन करके जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करता आ रहा है।

    आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी की शुरुआत 1950 से डीएनए तथा जीन अभियांत्रिकी पर रिसर्च के साथ हुई।। भारत में डॉक्टर हरगोविंद खुराना ने 1973 में जीन संश्लेषण का सफल प्रयोग करके भारत में इस क्षेत्र की संभावनाएं पैदा की। वर्तमान में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग कृषि, ऊर्जा, उद्योग तथा पर्यावरण संरक्षण क्षेत्रों में भरपूर किया जा रहा है।

    जैव_प्रोधोगिकी भारत में जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी), विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रक के विकास के लिए शीर्ष प्राधिकरण है। इसकी स्‍थापना देश में विभिन्‍न जैवप्रौद्योगिकीय कार्यक्रमों और क्रियाकलापों की योजना बनाने संवर्धन करने और समन्‍वयन करने के लिए की गई है।

    जैव_प्रौद्योगिकी या जैवतकनीकी तकनीकी का वो विषय है जो अभियान्त्रिकी और तकनीकी के डाटाऔर तरीकों को जीवों और जीवन तंत्रो से सम्बन्धित अध्ययन और समस्या के समाधान के लिये उपयोग करता है। जिन विश्वविद्यालयों में ये अलग निकाय नहीं होता, वहाँ इसे रासायनिक अभियान्त्रिकी, रसायन शास्त्र या जीव विज्ञान निकाय में रख दिया जाता है।

    जैव_प्रौद्योगिकी लागू जीव विज्ञान के एक क्षेत्र है कि इंजीनियरिंग, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा और अन्य bio-products आवश्यकता क्षेत्रों में रहने वाले जीवों और bio processes का इस्तेमाल शामिल है। जैव प्रौद्योगिकी भी निर्माण प्रयोजन के लिए इन उत्पादों का इस्तेमाल करता है।

    इसी प्रकार के शब्दों का प्रयोग आधुनिक आनुवंशिक साथ ही इंजीनियरिंग सेल ऊतक और संस्कृति प्रौद्योगिकी भी शामिल है।  अवधारणा जीवित मानव उद्देश्यों के अनुसार जीवों को संशोधित करने के लिए प्रक्रियाओं और (इतिहास) की एक व्यापक श्रेणी शामिल हैं – पशुओं के पौधों की, पालतू खेती के लिए वापस जा और इन के लिए प्रोग्राम है कि कृत्रिम चयन और संकरण रोजगार प्रजनन के माध्यम से “सुधार”. जैव प्रौद्योगिकी की तुलना करके, bio-engineering आमतौर पर जोर देने के साथ एक से संबंधित क्षेत्र के रूप में है के उच्च प्रणाली दृष्टिकोण (बदलकर या जरूरी नहीं कि जैविक सामग्री सीधे का उपयोग करके) के साथ interfacing और जीवित चीजों के बारे में अधिक उपयोग करने के लिए सोचा।

    जैव विविधता पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन जैव प्रौद्योगिकी के रूप में परिभाषित करता है: “कोई भी प्रौद्योगिकीय अनुप्रयोग है कि जैविक प्रणालियों, रहने वाले जीवों, या उसके डेरिवेटिव का उपयोग करता है, बनाने के लिए या विशिष्ट प्रयोग के लिए उत्पाद या प्रक्रियाओं को संशोधित.” जैव प्रौद्योगिकी अन्य शब्द “जीवन विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति के लिए व्यावसायिक उत्पादों को विकसित करने का आवेदन” में है।

    जैव प्रौद्योगिकी शुद्ध जैविक विज्ञान (आनुवांशिकी, सूक्ष्म जीव विज्ञान, पशु सेल संस्कृति, आण्विक जीव विज्ञान, जैव रसायन, भ्रूण विज्ञान, कोशिका जीव विज्ञान) और कई मामलों में मिलती भी है। जीव विज्ञान (रसायन इंजीनियरी, बायोप्रोसैस इंजीनियरिंग के क्षेत्र के बाहर से ज्ञान और तरीकों पर निर्भर है, सूचना प्रौद्योगिकी bio-robotics).

    इसके विपरीत, आधुनिक जीव विज्ञान (सहित आणविक पारिस्थितिकी के रूप में भी अवधारणाओं) अच्छी तरह जुड़ा हुआ है और जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से विकसित विधियों पर निर्भर है।

    जैव प्रौद्योगिकी के उपयोग ( Use of Biotechnology )

    चिकित्सा तथा स्वास्थ्य ( Medical and health)

    इसकी सहायता से सस्ती औषधियों के निर्माण, प्रतिरोधी टीकों, असाध्य बीमारियों के इलाज, उन्नत किस्मों के प्रजनन, अंगों के पुनर्विकास के लिए स्टेम सेल का प्रयोग आदि क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी ने उल्लेखनीय कार्य किया है। कैंसर तथा एड्स जैसी बीमारियों का इलाज भी जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से करने की कोशिश की जा रही है।

    जीन चिकित्सा द्वारा पार्किंसन जैसे वशांनुगत रोगों इलाज किया जा सकता है। जीन अंतरण के द्वारा इंसुलिन का उत्पादन मधुमेह के रोगियों के लिए वरदान साबित हुआ है। इसे लाल जैव प्रौद्योगिकी कहा जाता है।

    पर्यावरण संरक्षण (Environment protection)

    बायोरेमेडिएशन वह तकनीक है,जिसमें सूक्ष्मजीवों तथा एंजाइमों का प्रयोग अपशिष्ट प्रबंधन में किया जाता है।आॅयल जैपर इसका एक उदाहरण है,जो तेल रिसाव को नियंत्रण करने में काम में आता हैं।

    कृषि (Agriculture)

    वर्तमान में बढ़ती हुई जनसंख्या तथा संसाधनों की कमी को देखते हुए कृषि में जैव प्रौद्योगिकी का महत्व बढ़ता जा रहा है। ट्रांसजेनिक फसलों का प्रयोग करके कम लागत में उच्च गुणवत्ता युक्त खाद्य पदार्थों का उत्पादन किया जा सकता है। जो तापरोधकता,कटी सहिष्णुता, शुष्कतारोधी आदि गुणों से भरपूर हो

    जीन अभियांत्रिकी से वांछित पोषक तत्वों को खाद्य पदार्थों से प्राप्त किया जा सकता है। जो विकासशील देशों में गरीबी तथा कुपोषण से लड़ने में सहायक हो सकते हैं। बायोफोर्टिफिकेशन का उपयोग करके फसल में वृद्धि के दौरान ही उसके पोषक तत्वों में सुधार किया जा सकता है।रोग प्रतिरोधी तथा दुधारू पशुओं की नस्लों के प्रजनन में भी जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग हो रहा है। इसे हरित जैव प्रौद्योगिकी कहा जाता है।

    औधोगिक क्षेत्र (Industrial area)

    उद्योग में आवश्यक विभिन्न पदार्थों का उत्पादन तथा ईंधन जैव प्रौद्योगिकी के माध्यम से संभव हो सका हैं। विभिन्न अम्लों,प्रोटीन,विटामिन, स्टेरॉयड, एंटीबायोटिक्स का वृहद् स्तर पर उपयोग किया जा रहा है। इसे व्हाइट बायो टेक्नोलॉजी कहा जाता है। विभिन्न जीवाणुओं से उत्पन्न जैव ईंधन जिसमें शर्करा से उत्पादित बायो एथेनाॅल,सरसों आदि के ट्रांसऐस्ट्रिफिकेशन द्वारा निर्मित बायोडीजल में भी जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग होता है।

    भारत में जैव प्रौद्योगिकी का क्षेत्र ( Area of ​​Biotechnology in India )

    विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन जैव प्रौद्योगिकी विभाग की स्थापना 1986 में की गई थी। जो कि इसकी नोडल एजेंसी हैं। भारत में वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का 2% हिस्सा है। तथा हम शीर्ष 12 देशों में से एक है। भारत में औषधि के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी का सर्वाधिक विकास हुआ है। भारत में नियामक कानूनों के अभाव में वैज्ञानिक जोखिम आकलन कार्य है। जनता में जागरूकता का अभाव तथा वित्तीय संसाधन की कमी से यह क्षेत्र जूझ रहा है।

    जैव प्रौद्योगिकी नवाचार संगठन-  (BIO) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन-2017

    19-22 जून, 2017 के मध्य जैव प्रौद्योगिकी नवाचार संगठन (BIO) अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन-सैन डिएगो, अमेरिका में आयोजित किया गया बीआईओ का अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का सबसे बड़ा वैश्विक कार्यक्रम है। इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन की मेजबानी जैव प्रौद्योगिकी नवाचार संगठन द्वारा की जाती है।

    बीआईओ 1,100 जैव प्रौद्योगिकी कंपनियों, शैक्षणिक संस्थानों, अमेरिका और 30 से अधिक अन्य देशों में राज्य जैव प्रौद्योगिकी केंद्रों और संबंधित संगठनों का प्रतिनिधित्व करता है। बीआईओ के सदस्य नवाचार स्वास्थ्य सेवा, कृषि, औद्योगिक और पर्यावरण संबंधी जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों के अनुसंधान और विकास में लगे हैं।

    विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री वाई.एस. चौधरी के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमंडल बीआईओ-2017 में भाग लिया।

    आनुवांशिकीय अभियांत्रिकी (Genetic engineering)

    किसी जीव के (genome, जीनोम) में हस्तक्षेप कर के उसे परिवर्तित करने की तकनीकों व प्रणालियों तथा उनमें विकास व अध्ययन की चेष्टा का सामूहिक नाम है।  मानव प्राचीन काल से ही पौधों व जीवों की प्रजनन क्रियाओं में हस्तक्षेप करके उनमें नस्लों को विकसित करता आ रहा है (जिसमें लम्बा समय लगता है) लेकिन इसके विपरीत जनुकीय अभियांत्रिकी में सीधा आण्विक स्तर पर रासायनिक और अन्य जैवप्रौद्योगिक विधियों से ही जीवों का जीनोम बदला जाता है।

    प्रयोग आनुवांशिक अभियांत्रिकी द्वारा प्रकृति में न पाये जाने वाले कई जीव-लक्षणों को बनाया जा चुका है, मसलन कुछ जेलिमछली अंधेरे में स्वयं प्रजवलित होती हैं और इनसे डी एन ए लेकर खरगोश शिशुओं का जीनोम बदलने से रात्री में दमकने वाले ख़रगोश बनाये गये हैं।  इन तकनीकों से कई आनुवंशिक रोगों का उपचार हो सकने की आशा है और यह एक नई औद्योगिक क्रान्ति का अग्रदूत समझा जाने लगा है, जिस कारणवश कई देशों की सरकारें इसे विकसित करने के लिये निवेश कर रही हैं।

    18 जनवरी, 2017 को औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (DIPP) द्वारा जैवप्रौद्योगिकी विभाग की मेक इन इंडिया उपलब्धियां रिपोर्ट जारी की गई। भारतीय जैवप्रौद्योगिकी क्षेत्र को 2025 तक 100 बिलयन डॉलर का बनाने का लक्ष्य है। वर्तमान में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग का वैश्विक बाजार में हिस्सा 2% है।

    22 अप्रैल, 2016 को स्वदेशी तकनीक से विकसित भारत के पहले सेल्यूलोजिक एथेनॉल प्रौद्योगिकी संयंत्र का उद्घाटन किया गया। 9 मार्च, 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहला स्वदेश में विकसित एवं निर्मित रोटावायरस वैक्सीन ‘रोटावैक (Rotavac) का शुभारंभ किया।

    र्मास्यूटिकल्स की ग्रीन फील्ड परियोजनाओं एवं ब्राउनफील्ड परियोजनाओं हेतु स्वचालित मार्ग से क्रमशः 100% एवं 74% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति है। 30 दिसंबर, 2015 को ‘राष्ट्रीय जैवप्रौद्योगिकी विकास रणनीति 2015-2020’ का शुभारंभ किया गया।

    • आंध्र प्रदेश द्वारा जैव प्रौद्योगिकी नीति 2015-2020,
    • गुजरात द्वारा जैवप्रौद्योगिकी नीति 2016-2021,
    • राजस्थान द्वारा जैवप्रौद्योगिकी नीति 2015
    • तेलंगाना द्वारा लाइफ साइंसेज पॉलिसी 2015-2020 का शुभारंभ किया गया।

    सरकार का लक्ष्य आगामी तीन वर्ष में जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में 2000 स्टार्ट-अप की स्थापना का लक्ष्य है।

    राष्ट्रीय उधानिकी अनुसंधान संस्थान (National Institute of Urology Research)

    1. अखिल भारतीय समन्वित फूल उत्पादन विकास योजना,- नई दिल्ली
    2. केंद्रीय सुगंधित एवं औषधीय पौध संस्थान,-लखनऊ
    3. केंद्रीय कन्द फसल अनुसंधान संस्थान,- तिरूवनंतपुरम,केरल
    4. सब्जी अनुसंधान निदेशालय- वाराणसी, उतरप्रदेश
    5. मधुमक्खी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण(राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान)-  हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय,हिसार
    6. भारतीय उधानिकी अनुसंधान संस्थान-बैगलोर
    7. भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान- कालीकट(केरल)
    8. राष्ट्रीय मशरुम अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र- चम्बाघाट, सोलन (हिमाचल)
    9. नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट- करनाल, हरियाणा

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