Bharat Vibhajan भारत का विभाजन
जिन्ना की भूमिका और भारत का विभाजन
भारत का विभाजन और दो नए राज्यों/राष्ट्रों का निर्माण सन14 अगस्त,1947 को पाकिस्तान(मुस्लिम राष्ट्र) एवं सन 15 अगस्त 1947 को भारत(रिपब्लिक ऑफ़ इंडिया) में करने की घोषणा लॉर्ड माउन्ट बेटन ने की।
इस विभाजन में न केवल भारतीय उप-महाद्वीप के दो टुकड़े किये गये बल्कि बंगाल का भी विभाजन किया गया और बंगाल के पूर्वी हिस्से को भारत से अलग कर पूर्वी पाकिस्तान ( वर्तमान बांग्लादेश ) बना दिया गया। वहीं पंजाब का विभाजन कर पाकिस्तान का निर्माण हुआ।
इस विभाजन में रेलवे, फ़ौज, ऐतिहासिक धरोहर, केंद्रीय राजस्व, सबका बराबरी से बंटवारा किया गया। भारतीय महाद्वीप के इस विभाजन में जिन मुख्य लोगों ने हिस्सा लिया वो थे
मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड माउन्ट बेटन, सीरिल रैडक्लिफ़, जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गाँधी एवं दोनों संगठनों ( भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ) के कुछ मुख्य कार्य कर्तागण।
इन सब में सबसे अहम् व्यक्ति थे मुस्लिम राष्ट्र की मांग इस विभाजन का जो मुख्य कारण दिया जा रहा था वो था की हिंदू बहुसंख्यक है
आज़ादी के बाद यहाँ बहुसंख्यक लोग ही सरकार बनायेंगे तब मोहम्मद अली जिन्ना को यह ख़्याल आया कि बहुसंख्यक के राज्य में रहने से अल्पसंख्यक के साथ नाइंसाफ़ी या उन्हें नज़रअंदाज़ किया जा सकता है उन्होंने अलग से मुस्लिम राष्ट्र की मांग शुरू की।
भारत के विभाजन की मांग वर्ष दर वर्ष तेज होती गई। भारत से अलग मुस्लिम राष्ट्र के विभाजन की मांग सन 1920 में पहली बार उठाई और 1947 में उसे प्राप्त किया।
15 अगस्त 1947 के दिन भारत को हिंदू सिख बहुसंख्यक एवं मुस्लिम अल्पसंख्यक राष्ट्र घोषित कर दिया गया
1920 से 1932 में भारत पाकिस्तान विभाजन की नींव रखी गई। प्रथम बार मुस्लिम राष्ट्र की मांग अलामा इक़बाल ने 1930 में मुस्लिम लीग के अध्यक्षीय भाषण में किया था।
1930 में ही मोहम्मद अली जिन्ना ने सारे अखंड भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को भरोसे में ले लिया और कहा की भारत के मुख्यधारा की पार्टी कांग्रेस मुस्लिम हितों की अनदेखी कर रही है।
इसके बाद 1932 से 1942 तक में विभाजन की बात बहुत आगे तक निकल गई थी, सन् 1945 तक गांधी का युग खत्म होकर नेहरू का जमाना शुरू हो गया था। दोनों के बीच के फर्कों पर बात करने की मानो परंपरा-सी रही है, पर इन फर्कों का स्वतंत्रता के संघर्ष के परिणाम से संबंध ज्यादातर अंधेरे में रहा है
☘ आम्बेडकर का महत्व ☘
जब गांधी डॉ. आम्बेडकर को यह मांग स्वीकार करने के लिए ब्लैकमेल कर रहे थे कि अछूतों के साथ जाति व्यवस्था के परित्यक्तों की तरह नहीं बल्कि उसी के अंतर्गत निष्ठावान हिंदुओं के तौर पर बर्ताव किया जाएगा,
तब नेहरू ने आम्बेडकर के समर्थन में या उनके प्रति एकजुटता दर्शाने वाला एक भी लफ्ज न कहा
माउंटबैटन योजना, 3 जून 1947
लार्ड वैवेल के स्थान पर लार्ड माउंटबैटन के वायसराय बन कर आने के पूर्व ही भारत में विभाजन के साथ स्वतंत्रता का फार्मूला भारतीय नेताओं द्वारा लगभग स्वीकार के लिया गया था।
3 जून को माउंटबैटन ने भारत के विभाजन के साथ सत्ता हस्तांतरण की एक योजना प्रस्तुत की। इसे माउंटबैटन योजना के साथ ही 3 जून योजना के नाम से भी जाना जाता है।
मुख्य विन्दुः माउंटबैटन योजना के मुख्य बिन्दु निम्नानुसार थे–
पंजाब और बंगाल में हिन्दू तथा मुसलमान बहुसंख्यक जिलों के प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों की अलग बैठक बुलाई जाये और उसमें कोई भी पक्ष यदि प्रांत का विभाजन चाहेगा तो विभाजन कर दिया जायेगा।
विभाजन होने की दशा में दो डोमनियनों तथा दो संविधान सभाओं का निर्माण किया जायेगा। सिंध इस संबंध में अपना निर्णय स्वयं लेगा। उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत तथा असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह द्वारा यह पता लगाया जायेगा कि वे भारत के किस भाग के साथ रहना चाहते हैं।
योजना में कांग्रेस की भारत की एकता की मांग को अधिक से अधिक पूरा करने की कोशिश की गयी।
जैसे- भारतीय रजवाड़ों को स्वतंत्र रहने का विकल्प नहीं दिया जा सकता उन्हें या तो भारत में या पाकिस्तान में सम्मिलित होना होगा। बंगाल को स्वतंत्रता देने से मना कर दिया गया।
हैदराबाद की पाकिस्तान में सम्मिलित होने की मांग को अस्वीकार कर दी गयी। (इस मांग के संबंध में माउंटबैटन ने कांग्रेस का पूर्ण समर्थन किया)।
15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान को डोमिनियन स्टेट्स के आधार पर सत्ता का हस्तांतरण हो जायेगा।
यदि विभाजन में गतिरोध उत्पन्न हुआ तो एक सीमा आयोग का गठन किया जायेगा।
माउंटबैटन योजना को कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया तथा भारत का भारत एवं पाकिस्तान दो डोमिनियनों में विभाजन कर दिया गया।
इस योजना से जहां मुस्लिम लीग की बहुप्रतीक्षित पाकिस्तान के निर्माण की मांग पूरी हो गयी,
वहीं योजना में कांग्रेस की इस मांग का भी पूरा ध्यान रखा गया कि यथासंभव पाकिस्तान का भौगोलिक क्षेत्र छोटा से छोटा हो।
भारत ने डोमिनयन का दर्जा क्यों स्वीकार कियाः लाहौर अधिवेशन (1929) की भावना के विरुद्ध कांग्रेस ने डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा स्वीकार किया क्योंकि-इससे शांतिपूर्ण एवं त्वरित सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया सुनिश्चित हो गयी।
देश की तत्कालीन विस्फोटक परिस्थितियों को नियंत्रित करने के लिये आवश्यक था कि कांग्रेस जल्द से जल्द शासन की शक्तियां प्राप्त करे देश में प्रशासनिक एवं सैन्य ढांचे की निरंतरता को बनाये रखने के लिये भी यह अनिवार्य था।
भारत द्वारा डोमिनियन स्टेट्स का दर्जा स्वीकार किये जाने से ब्रिटेन को उसे राष्ट्रमंडल में शामिल करने का अवसर मिल गया।
इससे ब्रिटेन की यह चिर-प्रतीक्षित इच्छा पूरी हो गयी। यद्यपि भले ही यह अस्थायी था, परंतु ब्रिटेन को विश्वास था
भारत के राष्ट्रमंडल में आ जाने से उसे आर्थिक सुदृढ़ता तथा रक्षात्मक शक्ति मिलेगी तथा भारत में उसके निवेश के नये द्वार खुलेंगे।
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