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    Home»Psychology»Personality type, approach, adjustment व्यक्तित्व के प्रकार
    Psychology

    Personality type, approach, adjustment व्यक्तित्व के प्रकार

    By NARESH BHABLAJuly 1, 2020Updated:April 12, 2021No Comments9 Mins Read
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    व्यक्तित्व से क्या तात्पर्य है?

    प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण या विशेषताएं होती है। जो दूसरे व्यक्ति में नहीं होतीं। इन्हीं गुणों एवं विशेषताओं के कारण ही प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भिन्न होता है। व्यक्ति के इन गुणों का समुच्चय ही व्यक्ति का व्यक्तित्व कहलाता है।

    व्यक्तित्व किसी व्यक्ति के व्यवहार का कौन सा पक्ष है?

    व्यक्ति का पूरा स्वभाव और चरित्र ही व्यक्तित्व कहलाता है आधुनिक मनोविज्ञान का बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रमुख विषय है-व्यक्तित्व। कोई व्यक्ति कैसा आचरण करता है, कैसा महसूस करता है और कैसा सोचता है; किसी विशेष परिस्थिति में वह कैसा व्यवहार करता है, यह काफी कुछ उसकी मानसिक संरचना पर निर्भर करता है।

    Page Contents

    • व्यक्तित्व के प्रकार, विभिन्न उपागम, समायोजन, कुसमायोजन
    • परिभाषाएँ
    • शरीर- रचना के आधार पर क्रेचमर ने तीन प्रकार बताएं
        • मनोवैज्ञानिक आधार पर Jung व्यक्तित्व के दो प्रकार बताएं
        • समायोजन( Adjustment )                                   
        • समायोजन
        • समायोजन_की मुख्य परिभाषाएँ—
        • समायोजित व्यक्ति के लक्षण—
        • कुसमायोजन ( Maladjustment )
        • कुसमायोजित व्यक्ति के लक्षण—
    • कुसमायोजन के कारण-
    • कुसमायोजन से बचने के उपाय (रक्षात्मक युक्तियां)→
        • (i) प्रत्यक्ष उपाय—
        • (ii) अप्रत्यक्ष उपाय—
    • अप्रत्यक्ष उपाय

    व्यक्तित्व के प्रकार, विभिन्न उपागम, समायोजन, कुसमायोजन

    व्यक्तित्व के प्रकार

    व्यक्तित्व_शब्द से तात्पर्य है- नकली चेहरा, मुखोटा। अग्रेजी में “Personality ” शब्द की उत्पत्ति हुई है-persona से । पर्सनैलिटी शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है व्यक्तित्व शारीरिक मानसिक सामाजिक का किस संवेगात्मक क्रियाओं का रूप है-जो गत्यात्मक संगठन है ।

    भावुक व्यक्ति के व्यक्तित्व का गुण उनकी क्रियाएँ भावनाओं से संचालित होती है ।

    परिभाषाएँ

    • व्यक्तित्व व्यक्ति की संपूर्ण गुणात्मकता है उक्त परिभाषा है-वुडर्वथ की।
    • बोरिग के अनुसार “व्यक्तित्व ” की परिभाषा है-वातावरण के साथ सामान्य एवं स्थायी समायोजन ही व्यक्तित्व है ।
    • व्यक्तित्व जन्मजात एवं अर्जित प्रवृत्तियों का योग है, उक्त परिभाषा है- वैलेन्टाइन की ।
    • व्यक्तित्व की संरचना के अंतर्गत मत्यात्मकता तथा स्थलाकृति पक्ष का अध्ययन किस मनोवैज्ञानिक ने किया-स्मिथ व लेविन ने ।
    • अहम् का विकास बालक के बाल्यकाल में हो जाता है, उक्त कथन है-फ्रायड का ।
    • हरमन रोर्शा परीक्षण का निर्माण कब हुआ-1921मे ।
    • व्यक्तित्व व्यक्ति के उन मनोदैहिक व्यवस्थाओ का गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ अपूर्व समायोजन कर लेता है, उक्त कथन है-आलपोर्ट का
    • मनोविश्लेषण विधि के जन्मदाता है-फ्रायड
    • जुगं_ने_व्यक्तित्व_का_सिद्धांत दिया है-विश्लेषणात्मक_सिद्धांत ।
    • जुगं_ने_व्यक्तित्व_का विभाजन_किस पुस्तक में किया है-Type of Men में ।
    • जुगं_ने_मानव व्यक्तित्व को कितने भागो में बाटाँ है-अंनर्तमुखी, बर्हिमुखी, उभयमुखी, में
    • न्युमेन तथा स्टर्न ने व्यक्तित्वत्व को किन भागों में वर्गीकृत किया है- विश्लेषणात्मक व संश्लेषणात्मक ।

    शरीर- रचना के आधार पर क्रेचमर ने तीन प्रकार बताएं

    1. शक्तिहीन (Ashreni)- यह व्यक्ति लंबे ,दुबले-पतले ,शर्मीले एकांतप्रिय , निराशावादी व सामाजिक प्रवृत्ति के होते हैं।

    2. पुष्टकाय(Athletic) – यह लोग बलवान, खिलाड़ी, दृढ़ निश्चय, फुर्तील,े आशावादी ,आज्ञाकारी, तथा संतुलित शरीर वाले होते हैं। जैसे महेंद्र सिंह धोनी और दीपा करमाकर

    3. स्थूलकाय या नाटा(pyknic) यह लोग छोटे कद, के गोलमोल, मोटा शरीर, सामाजिक प्रवृत्ति, आराम प्रिय ,बहिर्मुखी तथा मिलन सहार वाली प्रवृत्ति के होते हैं । जैसे लालू प्रसाद यादव

    मनोवैज्ञानिक आधार पर Jung व्यक्तित्व के दो प्रकार बताएं

    1. अंतर्मुखी व्यक्तित्व- यह व्यक्ति आत्म केंद्रित होते हैं जैसे रचनाकार ,लेखक ,वैज्ञानिक, दार्शनिक
    2. बहिर्मुखी व्यक्तित्व – यह व्यक्ति आशावादी ,साहसी, परिवर्तन में विश्वास रखने वाल,े मिलनसार और सामाजिक होते हैं। जैसे अच्छे शिक्षक

    समायोजन( Adjustment )                                   

    समायोजन_शब्द अंग्रेजी के Adjustment का हिन्दी रूपान्तरण है। समायोजन का अर्थ है सुव्यवस्था अथवा अच्छे ढंग से परिस्थितियों को अनुकूलन बनाने की प्रक्रिया जिससे की व्यक्ति की आवश्यकताएँ पूरी हो जायें और उसमें मानसिक द्वन्द्व की स्थिति उत्पन्न न हो।

    समायोजन

    की प्रक्रिया से तात्पर्य व्यक्ति की आवश्यकताएँ व उनको पूरा करने वाली परिस्थितियों के बीच तालमेल स्थापित करने से है। जो व्यक्ति इन दोनों (परिस्थिति एवं आवश्यकता) के बीच तालमेल स्थापित नहीं कर पाता है ऐसा व्यक्ति तनाव, चिन्ता, कुण्ठा आदि का शिकार होकर असामान्य व्यवहार करने लग जाता है। इस असामान्य व्यवहार को कुसमायोजन/ मानसिक रोग ग्रस्तता कहते है।

    समायोजन_की मुख्य परिभाषाएँ—

    कॉलमेन के अनुसार- समायोजन व्यक्ति की अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तथा कठिनाईयों के निराकरण के प्रयासों का परिणाम है।

    स्मिथ के अनुसार- अच्छा समायोजन वह है जो यथार्थ पर आधारित तथा सन्तोष देने वाला है।

    स्किनर के अनुसार- समायोजन शीर्षक के अन्तर्गत हमारा अभिप्राय इन बातों से है, सामुहिक क्रियाकलापों में स्वस्थ तथा उत्साहमय ढंग से भाग लेना समय पर नेतृत्व का भार उठाने की सीमा तक उत्तरदायित्व वहन करना तथा सबसे बढ़कर समायोजन में अपने को किसी भी प्रकार को धोखा देने से बचने की कोशिश करना है।

    समायोजित व्यक्ति के लक्षण—

    • सुसमायोजित व्यक्ति वातावरण एवं परिस्थितियों का ज्ञान और नियंत्रण रखने वाला एवं उन्हीं के अनुसार आचरण करने वाला होता है।
    • स्वयं और पर्यावरण के मध्य सन्तुलन बनाये रखता है।
    • अपनी आवश्यकताओं और इच्छाओं के अनुसार पर्यावरण एवं वस्तुओं का लाभ उठाता है।
    • साधारण परिस्थितियों में सन्तुष्ट और सुखी रहकर अपनी कार्यकुशलता को बनाये रखता है।
    • उसके उद्देश्य स्पष्ट होते है और वह साहसपूर्वक एवं ठीक ढंग से कठिनाईयों एवं समस्याओं का सामना करता है।

    कुसमायोजन ( Maladjustment )

    कुसमायोजित बालक- कुसमायोजित बालक अथवा व्यक्ति अपने असाधारण अवांछित अनैतिक व्यवहार के कारण समाज एवं विद्यालय में विभिन्न प्रकार की समस्याएं उत्पन्न करते हैं अतः इन्हें समस्यात्मक बालक भी कहा जाता है

    इन बालकों को उनकी समस्या की प्रकृति के अनुसार तीन वर्गों में विभाजित किया गया है

    • व्यक्तिगत समस्या वाले बालक
    • सामाजिक एवं नैतिक समस्या वाले बालक
    • विशिष्ट समस्या वाले बालक

    एलेक्जेंडर और स्नीडर्स- ”कुसमायोजन से अभिप्राय कई प्रवृत्तियाँ हैं जैसे—अतृप्ति, भग्नाशा एवं तनावात्मक स्थितियों से बचने की अक्षमता, मन की अशांति एवं लक्षणों का निर्माण।”

    कुसमायोजित व्यक्ति के लक्षण—

    कुसमायोजित व्यक्ति अपने को वातावरण के अनुकूल नहीं बना पाता है। वह असामाजिक, स्वार्थी और दु:खी व्यक्ति होता है। उसके उद्देश्य, अनिश्चिंत और अस्पष्ट होते हैं। वह घृणा, द्वेष और बदले की भावना रखने वाला होता है।

    उसके सामने यदि साधारण-सी बाधा या छोटी-सी समस्या उत्पन्न हो जाती है तो वह अपना संतुलन खो बैठता है। कुसमायोजित व्यक्ति स्नायु रोग से पीडि़त, मानसिक द्वंद्व एवं कुण्ठा ग्रस्त तथा तनाव से युक्त होता है।

    कुसमायोजन के कारण-

    शारीरिक और भौतिक आवश्यकताओं से उत्पन्न समस्याएँ—भोजन, आवास, भौतिक संकटों से संरक्षण आदि से होता है। मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं से उत्पन्न समस्याएँ—सुविधा, संतोष, कष्ट से मुक्ति, स्वीकृति, स्वतंत्रता,आत्मसम्मान, सफलता और सिद्धि की आवश्यकता और सुरक्षा, स्नेह अपने साथी से आदर और समीपत्व की भावना की आवश्यकता।

    व्यक्ति के सामाजिक और सांस्कृतिक पर्यावरण से उत्पन्न समस्याएँ। कुसमायोजन व्यक्ति में उत्पन्न होने वाले मानसिक रोग—

    • तनाव- जब व्यक्ति समय परिस्थिति में आवश्यकतानुसार कार्य नहीं कर पाना तथा असफल हो जाता है तो वह तनाव का शिकार हो जाता है।
    • दुश्चिंता- जब अचेतन मन में दमित, इच्छा चेतन में आने लगती है या आने का प्रयास करती है तो व्यक्ति दुश्चिंता का शिकार हो जाता है।
    • दबाव- असफलता व सफलता तथा आत्मसम्मान की रक्षा के समय दबाव उत्पन्न हो जाता है।
    • भग्नाशा/कुण्ठा- बार-बार प्रयत्न करने के बावजूद भी जब व्यक्ति असफल हो जाता है तो वह निराश हो जाता है। इस निराशा को मनोवैज्ञानिक भाषा में भग्नाशा या कुण्ठा कहा जाता है।
    • द्वन्द्व/संघर्ष- जब एक साथ दो अवसर उपस्थित हो जाते है तथा चयन किसी एक का करना होता है तो मस्तिष्क में द्वन्द्व या संदेह उत्पन्न हो जाता है।

    कुसमायोजन से बचने के उपाय (रक्षात्मक युक्तियां)→

    (i) प्रत्यक्ष उपाय—

    • बाधाओं को दूर करना
    • अन्य मार्ग खोजना
    • लक्ष्य का प्रतिस्थापना
    • विश्लेषण एवं निर्णय

    (ii) अप्रत्यक्ष उपाय—

    •  दमन
    • दिवास्वप्न
    • आश्रित होना
    • प्रतिगमन
    • औचित्य स्थापन/युक्तिकरण/तर्क संगतिकरण
    • तादात्मीकरण
    • प्रक्षेपण
    • प्रतिक्रिया निर्माण या विपरित रचना
    • विस्थापन
    • शोधन/मार्गान्तिकरण/शुद्धिरकरण।

    अप्रत्यक्ष उपाय

    (1) दमन- कटु अनुभुतियों, दु:खद बातों तथा अतृप्त इच्छाओं को दबावपूर्वक भुला देना ही दमन कहलाता है।

    (2) द्विवास्वप्न- हकीकत में जिन इच्छाओं को पूर्ति नहीं हो पाती है। कल्पना के माध्यम से उन इच्छाओं की पूर्ति कर क्षणिक सन्तुष्टि प्राप्त कर लेना ही दिवास्वप्न है। अन्तरंग में व्यक्ति कल्पना जगत के माध्यम से अपनी खुशियों की तलाश करता है।

    (3) आश्रित होना- कर्महीन व्यक्ति पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर होकर समायोजन स्थापित करता है।

    (4) प्रतिगमन- जो वर्तमान स्थिति व्यक्ति को तनाव देती है उससे बचने के लिए अपनी पूर्व स्थिति की ओर लौट जाना प्रतिगमन कहलाता है। जैसे—एक व्यक्ति का फूट-फूट कर कर बच्चों की तरह रोना।

    (5) औचित्य स्थापना- किसी भी कारण से जो पद या वस्तु प्राप्त नहीं हो पाती है तो उसी वक्त उसमें कोई दोष निकालकर समायोजन करना। जैसे  अंगूर खट्टे है।

    (6) तादात्मीकरण- समायोजन स्थापित करने के लिए व्यक्ति अपना परिचय किसी ऐसे व्यक्ति के साथ तालमेल स्थापित कर लेता हो जिसे समाज में कोई पद या प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। ऐसी स्थिति में वह व्यक्ति प्रतिष्ठित व्यक्ति के गुणों व अवगुणों का अनुकरण करने लगता है

    (7) प्रक्षेपण- अपनी असफलता का दोष किसी ओर पर लगाकर अपने आपको सन्तुष्ट करना।

    (8) प्रतिक्रिया निर्माण/विपरीत रचना- कई बार किसी व्यक्ति की इच्छाएँ या आवश्यकताएँ इस तरह की होती है कि उन्हें सामाजिक रूप में प्रकट करना व्यक्ति के हित में नहीं होता क्योंकि इससे उनके सम्मान को खतरा होता है। इससे बचने के लिए विपरीत रचना करता है।

    (9) विस्थापन- अपनी दमीत भावनाओं तथा आक्रोश को निकालने के लिए व्यक्ति ऐसी वस्तुओं तथा व्यक्तियों को चुनता है जो उससे कमजोर हो तथा जिसके प्रति उत्तर के रूप में हानि पहुँचाने की कम सम्भावना हो।

    • जैसे बालक, जिसे अध्यापक द्वारा अच्छी तरह डाट पड़ी हो तो वह घर आकर अपना गुस्सा अपने छोटे भाई-बहिन को मार पिटकर निकालता है।
    • माता-पिता की डाँट खाकर बच्चा आक्रोश में फूलों को तोड़कर निकालता है।
    • निसन्तान दम्पत्ति अपना प्यार और दुलार दूसरों की सन्तान या कुत्ते बिल्ली, पालकर प्रकट करते है।

    (10) शोधन/मार्गान्तीकरण/शुद्धिकरण- असामाजिक असामान्य प्रवृत्तियों को सामाजिक/मान्य प्रवृत्तियों में परिवर्तित कर समायोजन स्थापित करना।

    • जैसे जो विद्यार्थी मार-काट, लड़ते-झगड़ते रहते है या निर्भिक होते है तो उनका खिलाड़ी, मुक्केबाज,पहलवान आदि के रूप में प्रतिष्ठित होना।

    शृंगार तथा रसिक प्रवृत्ति के लोगों का चित्रकार मूर्तिकार, गायक, आदि के रूप में प्रतिष्ठित होना।

    (iii) क्षतिपूरक उपाय- जिस क्षेत्र में व्यक्ति कमजोर है उसकी क्षतिपूर्ति किसी अन्य क्षेत्र या साधन के माध्यम से कर समायोजन स्थापित करना। जैसे बौनी लड़की का ऊँची हिल वाली चप्पल पहन कर समायोजन करना।

    (iv) आक्रामक उपाय- किसी भी कारण से अपने क्रोध पूर्ण व्यवहार को हिंसात्मक (शाब्दिक/क्रियात्मक) तरीके से अभिव्यक्त करना आक्रामकता कहलाती है। आक्रामकता रक्षक भी होती है और भक्षक भी होती है।

    किसी के अनुचित व्यवहार पर अपना क्रोध जताकर आक्रामक रूख अपनाकर अपनी बात को कहना सही बता है। इस तरह असामाजिक तत्त्वों या बुराईयों के प्रति आक्रामकता का रुख अपनाकर अपनी रक्षा करने में कोई बुराई नहीं है।

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