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    Home»Science»मानव शरीर- रुधिर परिसंचरण तंत्र Blood circulatory system
    Science

    मानव शरीर- रुधिर परिसंचरण तंत्र Blood circulatory system

    By NARESH BHABLAAugust 14, 2020No Comments12 Mins Read
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    Page Contents

    • रुधिर परिसंचरण तंत्र circulatory system
      • खुला परिसंचरण तंत्र (Open Circulatory System)-
      • बंद परिसंचरण तंत्र (close Circulatory System)-
    • मानव शरीर- परिसंचरण तंत्र (Human Body Circulatory System)
      • परिसंचरण (Circulation) :
      • कोशिका तंत्र (Capillary Network) :
    • 1. हृदय ( heart)
    • 2. रक्त (blood)
      • प्लाज्मा
      • कणिय भाग(कणिकाएं)
        • 1. लाल रूधिर कणिकाएं (RBC)
        • 2. श्वेत रक्त कणिकाएं (WBC)
        • 3.रक्त पट्टिकाएं(प्लेटलेट्स)
      • लसिका तंत्र
    • 3. रक्त वाहिनियां (Blood vessel)
      • धमनी (Artery )
      • शिरा (Vein)
      • केशिकाएं
    • Important Facts
        • यदि आपको हमारे दुआर दिए गए नोट्स पसंद आ रहे है तो आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते है https://www.facebook.com/goldenclasses0/

    रुधिर परिसंचरण तंत्र circulatory system

    रक्त परिसंचरण तंत्र द्वारा शुद्ध रुधिर का परिसंचरण(Circulation) हृदय से धमनी की और होता हैं। तथा अशुद्ध रक्त का परिसंचरण शरीर में हृदय से शिराओं की और होता है। रक्त परिसंचरण तंत्र की खोज विलियम हार्वे ने कि। 

    परिसंचरण तंत्र के दो प्रकार होते हैं जिन्हें क्रमशः खुला और बंद परिसंचरण तंत्र कहा जाता है।

    खुला परिसंचरण तंत्र (Open Circulatory System)-

    आर्थोपोडा संघ (कॉकरोच, केकड़ा, झींगा मछली,मच्छर,मक्खी आदि) तथा मोलस्का संघ (घेंघा ,सीपी,आक्टोपस) आदि के जंतुओं में खुला परिसंचरण तंत्र विकसित प्रकार का होता हैं। पक्षियों एवं स्तनधारियों में बंद परिसंचरण (रक्त वाहिनियों में बहता है।) तंत्र होता है। 

    बंद परिसंचरण तंत्र (close Circulatory System)-

    सभी विकसित जंतुओं में जैसे मछली, मेंढक,केंचुआ,ऐस्केरिस तथा स्तनधारी(मनुष्य में) भी इस प्रकार का परिसंचरण तंत्र पाया जाता है। कीटों में खुला परिसंचरण (रक्त सिधा अंगों के सम्पर्क में रहता है।)तंत्र होता है।

    मनुष्य में बंद विकसित तथा दौहरे प्रकार का परिसंचरण तंत्र पाया जाता है। मनुष्य का परिसंचरण तंत्र तीन घटकों से मिलकर बना होता है।

    1. हृदय
    2. रक्त
    3. रक्त वाहिनियां

    मानव शरीर- परिसंचरण तंत्र (Human Body Circulatory System)

    परिसंचरण तंत्र का अर्थ है रक्त का समस्त शरीर में परिभ्रमण। मानव के परिसंचरण तंत्र में रक्त नलिकाएं (Blood vessels) तथा हृदय मुख्य रूप से कार्य करते हैं। हृदय एक पेशीय अंग है, जिसका वजन लगभग 280 ग्राम होता है। हृदय एक पंप की तरह काम करता है। हृदय से रक्त धमनियों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों को जाता है तथा वहां से शिराओं के द्वारा हृदय में वापस आता है। इस प्रकार रक्त, हृदय धमनियों और शिराओं द्वारा पूरे शरीर में जीवनभर लगातार भ्रमण करता रहता है।

    circulatory system

    परिसंचरण (Circulation) :

    शुद्ध या ऑक्सीजनयुक्त (Oxygenated) रक्त फेफड़ों से हृदय में आता है। हृदय पंपिंग क्रिया द्वारा इस रक्त को धमनियों के द्वारा पूरे शरीर में पहुंचाता है। शरीर के रक्त में मिला ऑक्सीजन प्रयुक्त हो जाता है और अशुद्ध या ऑक्सीजन रहित (De-oxygenated) रक्त शिराओं द्वारा फिर हृदय की ओर आता है। हृदय इस रक्त को ऑक्सीजन प्राप्त करने के लिए फिर से फेफड़ों में भेजता है। इस प्रकार यह चक्र निरंतर चलता रहता है।

    कोशिका तंत्र (Capillary Network) :

    मुख्य धमनी शरीर के विभिन्न भागों में जाकर पतली-पतली शाखाओं में बंट जाती हैं। ये शाखाएं आगे और भी पतली-पतली शाखाओं में जाल की तरह बंट जाती हैं। इन्हें धमनी कोशिकाएं (Arterial capillaries) कहते हैं। धमनी कोशिकाओं का जाल, शिरा कोशिकाओं (Venal Capillaries) में बदल जाता है। शिरा कोशिकाएं एक-दूसरे से मिलकर शिरकाएं (Venules) बनाती हैं तथा शिरकाएं आपस में मिलकर मुख्य शिरा का निर्माण करती हैं। रक्त-परिभ्रमण तंत्र में शिरकाओं, शिराओं, हृदय धमनियों, धमनिकाओं, (Arteriole), धमनी कोशिकाओं और शिरा कोशिकाओं की नलियों का बंद चक्र है, जिसमें रक्त सदैव ही प्रवाहित होता रहता है।

    1. हृदय ( heart)

    मानव हृदय लाल रंग का तिकोना, खोखला एवं मांसल अंग होता है, जो पेशिय उत्तकों का बना होता है। यह एक आवरण द्वारा घिरा रहता है जिसे हृदयावरण कहते है। इसमें पेरिकार्डियल द्रव भरा रहता है जो हृदय की ब्राह्य आघातों से रक्षा करता है। हृदय की दीवार तीन विभिन्न स्तर- endocardium , Myocardium , Epicardium की बनी होती है। हृदय में मुख्य रूप से चार प्रकोष्ट होते है, जिन्हें लम्बवत् रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है।

    1. दाहिने भाग में – बायां आलिन्द एवं बायां निलय
    2. बायें भाग में – दायां आलिन्द एवं दायां निलय

    मगरमच्छ “क्रोकोडाइल” (घड़ियाल) ऐसा सरीसृप है। जिसमें 4 हृदय कोष्ठीय (chambered) होता है । पक्षी वर्ग एवं स्तनधारी वर्ग में हृदय 4 कोष्ठीय होता है।  केंचुए में हृदय की संख्या 4 जोड़ी(8 हृदय) पाई जाती है। काॅकरोच के हृदय में 13 चैम्बर पायें जाते हैं।

    हृदय का वजन महिला – 250 ग्राम, पुरूष – 300 ग्राम होता है मानव शरीर का सबसे व्यस्त अंग हृदय है।

    • हृदय का कार्य शरीर के विभिनन भागों को रक्त पम्प करना है।
    • यह कार्य आलिन्द व निलय के लयबद्ध रूप से संकुचन एवं विश्रांती(सिकुड़ना व फैलना) से होता है। 
    • हृदय जब रक्त को धमनियों में पंप करता है तो धमनियों की दिवारों पर जो दाब पड़ता है उसे रक्त दाब कहते है। 
    • रक्त दाब मापने वाले यंत्र को स्फिग्नोमिटर कहते है। प्रत्येक रक्त कण को शरीर का चक्र पुरा करने में लगभग 60 सैकण्ड लगते हैं

    • IMP- इस क्रिया में ऑक्सीकृत रक्त फुफ्फुस शिरा से बांये आलिन्द में आता है वहां से बायें निलय से होता हुआ महाधमनी द्वारा शरीर में प्रवाहित होता है।
    • शरीर से अशुद्ध या अनाक्सीकृत रक्त महाशिरा द्वारा दाएं आलिंद में आता है और दाएं निलय में होता हुआ फुफ्फुस धमनी द्वारा फेफड़ों में ऑक्सीकृत होने जाता है। यही क्रिया चलती रहती है।
    • एक व्यस्क मनुष्य का हृदय एक मिनट में 72 बार धड़कता है। जबकि एक नवजात शिशु का 160 बार।
    • एक धड़कन में हृदय 70 एम. एल. रक्त पंप करता है। हृदय में आलींद व निलय के मध्य कपाट होते है।
    • जो रूधिर को विपरित दिशा में जाने से रोकते हैं। कपाटों के बन्द होने से हृदय में लब-डब की आवाज आती है। 
    • सामान्य मनुष्य में रक्त दाब (BP) 120/80 mm Hg पारे की दाब के बराबर होती है। 
    • मानव रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा 12 से 15 ग्राम प्रति 100 मिलीलीटर पाया जाता है।
    • हृदय धड़कन का नियंत्रण पेस मेकर करता है। जो दाएं आलिन्द में होता है इसे हृदय का हृदय भी कहते है। 
    • हृदय को रक्त पहुंचाने वाली धमनी में “कोरोनरी धमनी” कहलाती हैं।
    • और इस धमनी में “कोलेस्ट्रॉल” की मात्रा बढ़ जाने पर हृदय आघात (हार्ट अटैक) हो जाता है।
    • हृदय धड़कन का सामान्य से तेज होना – टेकीकार्डिया
    • हृदय धड़कन का सामान्य से धीमा होना – ब्रेडीकार्डिया
    • हृदय के अध्ययन को कार्डियोलॉजी कहते है। प्रथम हृदय प्रत्यारोपण – 3 दिसम्बर 1967 डा. सी बर्नार्ड(अफ्रिका) ने किया एवम
    •  भारत में प्रथम 3 अगस्त 1994 डा. वेणुगोपाल द्वारा केरल में किया गया। जारविस -7 प्रथम कृत्रिम हृदय है।
    • जिसे रॉबर्ट जार्विक ने बनाया। कृत्रिम किडनी सुबोरायॅ ने बनायी।

    सबसे कम धड़कन ब्लु -व्हेल के हृदय की 25/मिनट है  सबसे अधिक धड़कन छछुंदर – 800/मिनट है 

    2. रक्त (blood)

    • रक्त एक प्रकार का तरल संयोजी ऊतक है। रक्त का निर्माण लाल अस्थि मज्जा में होता है
    • तथा  भ्रूणावस्था में प्लीहा में रक्त का निर्माण होता है। सामान्य व्यक्ति में लगभग 5 से 6 लीटर रक्त होता है।
    •  जो प्रतिशत में सात से आठ प्रतिशत पाया जाता है। रुधिर का निर्माण दो घटकों से होता है
    • जिन्हें क्रमशः रुधिर प्लाज्मा और रुधिर कणिकाएं कहा जाता है। 

    रक्त का Ph मान 7.4 (हल्का क्षारीय) होता है। रक्त का तरल भाग प्लाज्मा कहलाता है। जो रक्त में 55 प्रतिशत होता है।

    तथा शेष 45 प्रतिशत कणीय(कणिकाएं) होता है। रक्त का अध्ययन हिमोटॉलॉजी कहलाता है।

    रक्त निर्माण की प्रक्रिया हीमोपोइसिस कहलाती है।

    • ऊंचाई पर जाने पर RBC की मात्रा बढ़ जाती है। लाल रक्त कणीका का मुख्य कार्य आक्सीजन का परिवहन करना है।
    • मानव शरीर में सामान्य रक्त चाप (Blood Fresher) 120/80 एम.एम. होता है। 
    • उच्च रक्तदाब की स्थिति हृदय के संकुचित होने पर बनती हैं जिसे सिस्टोल कहते हैं।
    • तथा निम्न रक्त दाब की स्थिति हृदय के फैलने पर बनती है जिसे डायस्टोल कहते हैं।

    प्लाज्मा

    • प्लाज्मा में लगभग 92 प्रतिशत जल व 8 प्रतिशत कार्बनिक व अकार्बनिक पदार्थ घुलित या कोलॉइड के रूप में होते है।
    • प्लाज्मा शरीर को रोगप्रतिरोधक क्षमता प्रदान करता है। उष्मा का समान वितरण करता है।
    • हार्मोन को एक स्थान से दुसरे स्थान पर ले कर जाता है।

    कणिय भाग(कणिकाएं)

    रूधिर कणिकाएं संपूर्ण रुधिर का 40 से 45% भाग बनाती हैं जो कार्य एवं संरचना के आधार पर तीन प्रकार की होती हैं। जिन्हें क्रमशः आरबीसी, डब्ल्यूबीसी एवं ब्लड प्लेट्स कहा जाता है।

    1. लाल रूधिर कणिकाएं (RBC)

    आरबीसी को एरिथ्रोसाइट्स के नाम से जाना जाता है इसका निर्माण लाल अस्थि मज्जा वाले भाग से होता है। 

    भ्रूणावस्था में आरबीसी का निर्माण प्लीहा तथा यकृत से होता है। आरबीसी संरचना में अंडाकार होती है।

    ये कुल कणिकाओं का 99 प्रतिशत होती है। ये केन्द्रक विहीन कोशिकाएं है। इनमें हिमोग्लोबिन पाया जाता है।

    हीमोग्लोबिन की केंद्रक में आयरन धातु पाई जाती है। जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है।

    हीमोग्लोबिन O2 तथा CO2 का शरीर में परिवहन करता है।

    इसकी कमी से रक्तहीनता(एनिमिया) रोग हो जाता है। लाल रक्त कणिकाएं प्लीहा में नष्ट होती है।

    अतः प्लीहा को लाल रक्त कणिकाओं का कब्रिस्तान भी कहते है।

    एक व्यस्क मनुष्य में लाल रक्त कणिकाओं की संख्या लगभग  5 से 5•5 लाख/mm 3 होती है इसका जीवन काल 120 दिन होता है। 

    आरबीसी का मुख्य कार्य ऑक्सीजन का परिवहन करना है।

    संसार के समस्त स्तनधारी प्राणियों के आरबीसी में केंद्रक नहीं पाया जाता है

    लेकिन ऊंट तथा लामा दो ऐसे स्तनधारी प्राणी है। जिनकी आरबीसी में केंद्रक पाया जाता है। 

     ऊंट एक ऐसा स्तनधारी प्राणी है जिसकी आरबीसी का आकार सबसे बड़ा होता है। 

    हिरण की आरबीसी का आकार सबसे छोटा होता है।

    यदि किसी व्यक्ति को कुछ दिनों के लिए अंतरिक्ष या माउंट एवरेस्ट पर्वत पर छोड़ दिया जाए तो आरबीसी की संख्या और आकार दोनों बढ़ जाएंगे। 

    2. श्वेत रक्त कणिकाएं (WBC)

    ये प्रतिरक्षा प्रदान करती है। इसको ल्यूकोसाइट भी कहते है। WBC का निर्माण मनुष्य के शरीर में श्वेत अस्थि मज्जा से होता है।

    डब्ल्यूबीसी का जीवनकाल मनुष्य के शरीर में लगभग 8 से 10 दिन का होता है। डब्ल्यूबीसी की संख्या मनुष्य के शरीर में लगभग 5000 से 9000 प्रति घन मिली मीटर होती है।

     आरबीसी और डब्ल्यूबीसी का अनुपात रुधिर में 600:1 होता है।

    डब्ल्यूबीसी आकार में अमीबा के आकार की होती हैं अर्थात इसका कोई निश्चित आकार नहीं होता है। 

    डब्ल्यूबीसी का मुख्य कार्य हानिकारक जीवाणुओं से शरीर की सुरक्षा करना है। 

    केन्द्रक की आकृति व कणिकाओं के आधार पर श्वेत रक्त कणिकाएं 5 प्रकार की होती है।

    रक्त में श्वेत रक्त कणिकाओं का अनियंत्रित रूप से बढ़ जाना ल्यूकेमिया कहलाता है। इसे रक्त कैसर भी कहते है।

    आकार में सबसे बड़ी डब्ल्यूबीसी मोनोसाइट्स है लिंफोसाइट प्रकार की डब्ल्यूबीसी आकार में सबसे छोटी होती है। संख्या में सबसे अधिक न्यूट्रोफिल प्रकार की डब्ल्यूबीसी पाई जाती हैं।

    3.रक्त पट्टिकाएं(प्लेटलेट्स)

    • रुधिर पटलिकाओं को थ्रोम्बोसाइट के नाम से जाना जाता है।
    • रुधिर पटलिकाओं का निर्माण लाल अस्थि मज्जा से होता है।
    • जो संरचना में प्लेट के आकार के होते हैं। ये केन्द्रक विहिन कोशिकाएं है जो रूधिर का धक्का बनने में मदद करती है
    • इसका जीवन काल 5-9 दिन का होता है। ये केवल स्तनधारियों में पाई जाती है।
    • रक्त फाइब्रिन की मदद से जमता है। 
    • इसकी संख्या मनुष्य के शरीर में लगभग 3 से 5 लाख प्रति घन मिलीमीटर होती है।

    डेंगू जैसी विषाणु जनित बीमारी में शरीर में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती हैं। क्योंकि डेंगू के विषाणु प्लेटलेट्स को खा जाते हैं।

    चिकित्सालयों के “ब्लड बैंक” में रक्त को लगभग 40 डिग्री फारेनहाइट ताप पर 1 महीने तक सुरक्षित रखा जाता है।

    इस रक्त को जमने से रोकने के लिए सोडियम साइट्रेट तथा सोडियम ऑक्सजलेट रसायन मिलाए जाते हैं।

    यह रसायन रक्त को जमाने वाले तत्व कैल्शियम को प्रभावहीन कर देते हैं।

    लसिका तंत्र

    लाल रुधिराणु अनुपस्थित रहती है । श्वेत रुधिराणु अधिक लिंफोसाइट सबसे अधिक होते हैं।

    यह रक्त के समान परंतु रंगहीन द्रव है। इसके द्वारा लसिका कणिकाओं का निर्माण किया जाता है लसीका कोशिका लसीका नोड से निर्मित होती है।

    जो एक सिरे पर खुली तथा दूसरे सिरे पर बंद होती है। लसीका द्रव शरीर के विभिन्न अंगों से हृदय की ओर बढ़ता है।

    इसकी खोज लैंड स्टीनर ने की थी। इसका वर्गीकरण एंटीजन के आधार पर किया गया।

    हल्के पीले रंग का द्रव जिसमें RBC तथा थ्रोम्बोसाइट अनुपस्थित होता है। केवल WBC उपस्थित होती है।

    कार्य

    • रक्त की Ph को नियंत्रित करना।
    • रोगाणुओं को नष्ट करना।
    • वसा वाले ऊतकों को गहराई वाले भागों तक पहुंचाना।
    • लम्बी यात्रा करने पर लसिका ग्रन्थि इकठ्ठा हो जाती है, तब पावों में सुजन आ जाती है।

    3. रक्त वाहिनियां (Blood vessel)

    शरीर में रक्त का परिसंचरण वाहिनियों द्वारा होता है। जिन्हें रक्त वाहिनियां कहते है। मानव शरीर में तीन प्रकार की रक्त वाहिनियां होती है।
    1. धमनी 2. शिरा 3. केशिका

    धमनी (Artery )

    शुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के अन्य अंगों तक ले जाने वाली वाहिनियां धमनी कहलाती है। इनमें रक्त प्रवाह तेजी व उच्च दाब पर होता है। महाधमनी सबसे बड़ी धमनी है। किन्तु फुफ्फुस धमनी में अशुद्ध रक्त प्रवाहित होता है।

    शिरा (Vein)

    शरीर के विभिन्न अंगों से अशुद्ध रक्त को हृदय की ओर लाने वाली वाहिनियां शिरा कहलाती है। किन्तु फुफ्फुस शिरा में शुद्ध रक्त होता है।

    केशिकाएं

    ये पतली रूधिर वाहिनियां है इनमें रक्त बहुत धीमे बहता है।

    Important Facts

    • मुख में बैक्टीरिया को मारने का काम कौन सा एंजाइम करता है- लाइसोजाइम
    • जार्विक-7 क्या है- कृत्रिम हृदय
    • कृत्रिम रक्त रासायनिक रूप से क्या होते हैं- फ्लोरो कार्बन
    • रक्त में पाई जाने वाली प्रमुख धातु कौन सी है- लोहा या आयरन
    • “रक्त का कब्रिस्तान” किसे कहते हैं-प्लीहा
    • रक्त का शुद्धिकरण कहां होता है-फेफड़ों में
    • किस धमनी में कोलेस्ट्रोल की मात्रा बढ़ जाने पर हृदय आघात हो जाता है- कोरोनरी
    • मनुष्य में हृदय धड़कन (स्पंदन) की दर प्रति मिनट औसतन कितनी होती है- 72 बार
    • किस शिरा में अपवाद स्वरुप शुद्ध रक्त का परिसंचरण होता है- पल्मोनरी
    • किस धमनी में अपवाद स्वरुप अशुद्ध रक्त का परिसंचरण होता है- पल्मोनरी

    • वह कौन-सा सृरीसप है,जिसमें 4 कोष्ठिय हृदय होता है।- क्रोकोडाइल (घड़ियाल)
    • रक्त एक तरल संयोजी उत्तक है। मानव हृदय हृदयावरण में बंद होता है।
    • लाल रुधिर कोशिकाओं का उत्पादन अस्थिमज्जा द्वारा होता है।
    • धमनी और शिरा में उत्कोष्ट एवं निलय में से रक्तचाप सबसे अधिक किसमें होता है- निलय
    • हिमोग्लोबिन एक प्रकार का प्रोटीन है।
    • रक्त में हीमोग्लोबिन, ऑक्सीजन ले जाने का कार्य करता है।
    • शल्य चिकित्सा के लिए कृत्रिम हृदय का प्रयोग सर्वप्रथम माइकल वैकी द्वारा शुरू किया गया था।
    • पेसमेकर दिल की धड़कन प्रारंभ करने का कार्य करता है।
    • मानव हृदय में बांय निलय के संकुचन पर रक्त महाधमनी की ओर प्रवाहित होता है।
    • हिमोग्लोबिन तथा क्लोरोफिल दो जीव हैं ,जिनमें क्रमशःलोहा तथा मैग्नीशियम तत्व पाए जाते हैं।
    • हीमोफिलिया रोग विलंबित रक्त स्कंदन से संबंधित है।
    • रक्त द्वारा ऑक्सीजन ले जाने के कार्य में लोहित कोशिकाएं भाग लेती है।

    • जिगर में ऑक्सीजन इधर-उधर पहुंचाने वाली धमनी को यकृत धमनी कहते हैं।
    • लाल रुधिर कोशिकाओं का महत्वपूर्ण घटक हीमोग्लोबीन है।
    • प्रतिदिन हमारे हृदय के कपाट(वाल्व) लगभग एक लाख बार खुलते और बंद होते हैं।
    • रक्त के थक्के जमने का कारण थ्राम्बिन हैं।
    • डॉक्टर द्वारा प्रयोग किए जाने वाला स्टेथोस्कोप ध्वनि के परावर्तन के सिद्धांत पर कार्य करता है।
    • हीमोफीलिया एक आनुवंशिक विकार है। यह रोग सर्वप्रथम ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया को होने के कारण यह रोग राजपरिवारों से संबंधित माना जाता है इसे राजशाही रोग भी कहा जाता है।
    • जीवित जीव में प्रतिरक्षियों का उत्पादन प्रेरित करने वाले पदार्थ को प्रतिजन या एंटीजन कहते हैं।
    • किसी बाहरी पदार्थ के मानव रुधिर प्रणाली में प्रविष्ट होने पर श्वेत रुधिर कणिकाएं अपनी प्रतिक्रिया प्रारंभ करने लगती हैं।
    • धमनियों की भित्तियों पर रक्त द्वारा डाले गए दाब को रक्त दाब कहते हैं।
    • गुर्दे को रक्त आपूर्ति करने वाले रुधिर वाहिका वृक्क धमनी कहलाती है।
    • फेफड़े से हृदय के लिए रक्त को ले जाने वाली रुधिर वाहिका को फुफ्फुस शिरा कहते हैं।
    • मांसपेशियों,तात्रिकाएं, जीभ तथा हृदय में से हृदय शरीर एक ऐसा अंग है जो कभी विश्राम नहीं करता है।
    • लसीका कोशिकाएं रोगों का प्रतिरोध करने में सहायता करती है।
    • प्रतिरक्षी कोशिकाएं पैदा करने वाली कोशिकाएं लसिकाणु या लिंफोसाइट होती है।

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