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    Home»History»Ancient History»प्राचीन भारतीय संस्कृति के लक्षण Ancient Indian Culture
    Ancient History

    प्राचीन भारतीय संस्कृति के लक्षण Ancient Indian Culture

    By NARESH BHABLASeptember 8, 2020No Comments15 Mins Read
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    Page Contents

    • प्राचीन भारतीय संस्कृति के लक्षण
      • प्राचीन भारत का इतिहास
        • पुरापाषाण काल के लोग नेग्रिटो जाति के थे।
        • भारतवर्ष के इतिहास को जानने के स्त्रोत ?
      • भारतीय संस्कृति की विशेषताऐं (Characteristics of Indian Culture): ~
      • ? प्राचीन भारतीय इतिहास के आधुनिक लेखक?
      • राष्ट्रवादियों की दृष्टि और योगदान
      • अराजनैतिक इतिहास की ओर मोड़

    प्राचीन भारतीय संस्कृति के लक्षण

    प्राचीन भारतीय

    भारतीय संस्कृति विश्व के इतिहास में कई दृष्टियों से विशेष महत्त्व रखती है। यह संसार की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। भारतीय संस्कृति कर्म प्रधान संस्कृति है। मोहनजोदड़ो की खुदाई के बाद से यह मिस्र, मेसोपोटेमिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं के समकालीन समझी जाने लगी है।प्राचीनता के साथ इसकी दूसरी विशेषता अमरता है। चीनी संस्कृति के अतिरिक्त पुरानी दुनिया की अन्य सभी – मेसोपोटेमिया की सुमेरियन, असीरियन, बेबीलोनियन और खाल्दी प्रभृति तथा मिस्र ईरान, यूनान और रोम की-संस्कृतियाँ काल के कराल गाल में समा चुकी हैं,

    कुछ ध्वंसावशेष ही उनकी गौरव-गाथा गाने के लिए बचे हैं; किन्तु भारतीय संस्कृति कई हज़ार वर्ष तक काल के क्रूर थपेड़ों को खाती हुई आज तक जीवित है।उसकी तीसरी विशेषता उसका जगद्गुरु होना है। उसे इस बात का श्रेय प्राप्त है कि उसने न केवल महाद्वीप-सरीखे भारतवर्ष को सभ्यता का पाठ पढ़ाया, अपितु भारत के बाहर बड़े हिस्से की जंगली जातियों को सभ्य बनाया, साइबेरिया के सिंहल (श्रीलंका) तक और मैडीगास्कर टापू, ईरान तथा अफगानिस्तान से प्रशांत महासागर के बोर्नियो, बाली के द्वीपों तक के विशाल भू-खण्डों पर अपनी अमिट प्रभाव छोड़ा। संस्कृति सर्वांगीणता, विशालता, उदारता, प्रेम और सहिष्णुता की दृष्टि से अन्य संस्कृतियों की अपेक्षा अग्रणी स्थान रखती है

    भारत उत्तर के हिमालय से लेकर दक्षिण में समुद्र तक फैला उपमहाद्वीप है इसमें महाकाव्य रामायण, महाभारत तथा पुराणों में भारत वर्ष कहा गया है

    हिंद शब्द सिंधु नदी तट पर बसे निवासियों के कारण प्रचलन में आया यूनानी आक्रमणकारियो ने सिंधु तट से ही भारत में प्रवेश किया था उच्चारण दोष होने के कारण इन्होंने सिंधु को हिंद कहा और यही शब्द प्रचलित हो गया सिंधु नदी से आगे बढ़कर जब इस देश के विस्तृत भू-भाग को देखा गया तो उसे इस देश को हिंदुस्तान कहा जाने लगा

    प्राचीन भारत का इतिहास

    1 प्रागैतिहासिक काल वह काल जिसका कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं अतः इस कॉल का इतिहास पूर्णता उत्खनन में मिले पुरातात्विक साक्ष्य ऊपर निर्भर है पाषाण काल को प्रागैतिहासिक काल में रखा जाता है ।

    2 आद्य ऐतिहासिक काल इस काल की लिखित लिपि तो है पर या तो उसे पढ़ने में सफलता नहीं मिली है या उसकी प्रमाणिकता संदिग्ध है हड़प्पा और वैदिक संस्कृति की गणना आद्य ऐतिहासिक काल में की जाती है ।

    3 ऐतिहासिक काल इस काल का इतिहास लिखित साधनों पर निर्भर करता है इसके पुरातात्विक व साहित्यिक विवरण उपलब्ध है तथा लिपि पढ़ने में सफलता भी मिली है ईसा पूर्व छठी शताब्दी से ऐतिहासिक काल प्रारंभ होता है।

    पुरापाषाण काल के लोग नेग्रिटो जाति के थे।

    सर्वप्रथम रॉबर्ट ब्रूसफुट ने 1863 ईसवी में मद्रास के पास स्थित पल्लवरम नामक स्थान से पुरापाषाण काल का उपकरण प्राप्त किया जो कि एक हैंड -एक्स था

    भारतवर्ष के इतिहास को जानने के स्त्रोत ?

    भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में प्रमाणित जानकारी सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज (1921 ईस्वी) में पुरातत्ववेत्ताओं दयाराम साहनी द्वारा बौद्ध स्तूप की खुदाई के दौरान सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमाण सामने आए थे सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताएं (मिस्र, मेसोपोटामिया, सुमेर एवं क्रीट) के समान विकसित एवं प्रचलित प्राचीन थी

    भारत के इतिहास की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए 6 स्त्रोत महत्वपूर्ण है

    ⬇⬇⬇
    1. अनैतिहासिक ग्रंथ
    2. ऐतिहासिक ग्रंथ
    3. विदेशी विवरण
    4. अभिलेख
    5. मुद्रा
    6. प्राचीन स्मारक

    1. अनैतिहासिक ग्रंथ – इसके अंतर्गत वेद, ब्राह्मण, उपनिषद, धर्मशास्त्र, बौद्ध साहित्य, जैन साहित्य आदि आते हैं

    2. ऐतिहासिक ग्रंथ – इसके अंतर्गत महाकाव्य (रामायण- महाभारत), पुराण, अर्थशास्त्र हर्ष चरित, राज तरंगिणी (तमिल ग्रंथ), दीपवंश, महावंश आदि को शामिल किया जाता है

    3. विदेशी विवरण – विदेशी लेखकों में यूनानी लेखक एरियन, प्लूटार्क, स्ट्रैबो,प्लिनी, जस्टिन आदि, चीनी लेखक सुभाचिन तिब्बती लेखक तारानाथ मुस्लिम लेखक अलबरूनी का नाम मुख्य रूप से लिया जा सकता है इसके अलावा विदेशी यात्रियों में यूनानी दूत मेगस्थनीज, चीनी यात्री फाह्यान और हेंगसांग है इन लेखकों के विवरणों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ रमाशंकर त्रिपाठी ने लिखा है-“इनसे भारतीय तिथि के अशांत सागर में समसामयिकता स्थापित करने में सहायता मिलती है”

    4. अभिलेख – प्राचीन इतिहास को जानने का सबसे महत्वपूर्ण तथा विश्वसनीय साधन अभिलेख है यह लेख स्तंभों, शिलाओ, गुफाओं में मिलते हैं मूर्तियों, पात्रों और तामपत्रो के रूप में भी अभिलेख मिले हैं अभिलेखों के रूप में अशोक के अभिलेख, प्रयाग का स्तंभ लेख, हाथी गुफा लेख सबसे प्रसिद्ध माने जाते हैं प्रयाग स्तंभ लेख खारवेल नरेश के शासन काल की इतिहास को जानने का एक मात्र साधन है एशिया माइनर में स्थित बेगजकोई के अभिलेख भारतीय इतिहास पर थोड़ा बहुत प्रकाश पड़ता है

    इतिहासकार स्मिथ ने लिखा है- “प्रारंभिक हिंदू इतिहास में घटनाओं की तिथि का ठीक-ठीक ज्ञान अभी तक प्राप्त नहीं हो सका है वह प्रधानता अभिलेखों के साक्ष्य पर आधारित है”

    5.मुद्रा- माना जाता है कि 206 ई पूर्व से 300 ई पूर्व तक का भारतीय इतिहास जानने का प्रधान साधन मुद्रा ही है मुद्राओं द्वारा राजाओं के नाम, उसकी वेशभूषा, उनके शासनकाल, राजनीतिक एवं धार्मिक विचारों को जानने में सहायता मिलती है

    मुद्राओं से उस काल की आर्थिक दशा का भी पता चल जाता है मुद्रा यदि शुद्ध सोने चांदी की होती है तो उस से उस काल की संपन्नता का पता चल जाता है चित्रो तथा उस पर अंकित शब्दो से कला और संस्कृति की जानकारी हो जाती है

    मुद्रा के संबंध में स्मिथ ने कहा है- सिकंदर के आक्रमण के समय से मुद्रा के प्रत्येक युग के इतिहासकारों को अन्वेषण के कार्य से अमूल्य सहायता पहुचाती रही है

    6. प्राचीन स्मारक – इसके अंतर्गत प्राचीन काल की मूर्तियां, मंदिर, स्तुप, खण्डहर आते हैं इनके द्वारा राजनीतिक दशा के अलावा धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक दशा ज्ञान होता है

    भारतीय संस्कृति की विशेषताऐं (Characteristics of Indian Culture): ~

    भारतीय संस्कृति अपने आप में अनूठी और विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है | इसमें अनेक विशेषताऐं विद्यमान हैं जो कि निम्नवत हैं

    1. प्राचीनता — प्राचीनता से तात्पर्य है कि हमारी संस्कृति में आदिकालीन और वैदिकयुगीन संस्कृति के साथ-साथ रामायण और महाभारत कालीन संस्कृति की विशषताऐं मौजूद हैं |
    2. निरन्तरता :~भारतीय संस्कृति का स्वरूप सतत् और निरन्तर गतिशील प्रकृति का रहा है | यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रतिस्थापित होती रही है ,जो कि निरन्तर गतिमान है |
    3. ग्रहणशीलता :~ भारतीय संस्कृति में मूल तत्वों की प्रधानता तो है ही , इसके साथ ही यह दूसरी संस्कृति से भी कुछ न कुछ ग्रहण करती रही है , जैसे – मुगल संस्कृति का ग्रहण |
    4. वर्ण व्यवस्था :~ वर्ण व्यवस्था भारतीय संस्कृति की मूलभूत विशेषता और केन्द्रीय धुरी है | इस व्यवस्था के अन्तर्गत समाज को चार वर्णों में बाँटा गया है – ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य और शूद्र | दूसरे शब्दों में वर्ण व्यवस्था श्रम विभाजन की सामाजिक व्यवस्था का ही दूसरा नाम है |
    5. आश्रम व्यवस्था :~ कर्म को सर्वोपरि स्थान प्रदान करते हुए भारतीय समाज में आश्रम व्यवस्था का विधान किया गया है | यह वह व्यवस्था है जिसमें सामाजिक क्रियाकलापों और निर्धारित कर्तव्यों को प्राकृतिक प्रभाव और गुणों के आधार पर विविध समूहों में विभाजित किया जाता है |

    1. संयुक्त परिवार प्रणाली :~ संयुक्त परिवार प्रणाली हमारे पूर्वजों द्वारा दी गई एक अनूठी प्रणाली है , जो परिवार के समस्त सदस्यों को एकसूत्र में बाँधे रखती है | इस प्रणाली में बच्चों का मूलभूत विकास श्रेष्ठ रूप से होता है , जो कि जरूरी भी है |
    2.  पुरूषार्थ :~पुरूषार्थ उस सार्थक जीवन-शक्ति का योग है जो कि व्यक्ति को सांसारिक सुख -भोग के बीच अपने धर्म पालन के माध्यम से मोक्ष की राह दिखलाता है | भारतीय संस्कृति और दर्शन में मानव के लिए चार पुरूषार्थ निर्धारित किये गये हैं – धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष |
    3. संस्कार : ~ संस्कार का अर्थ है – परिशुद्धि | भारतीय हिन्दू संस्कृति में सोलह संस्कारों को बताया गया है | जबकि अन्य धर्मों में भी संस्कारों का प्रचलन है |
    4. विविधता में एकता :~ विविधता में एकता भारतीय संस्कृति की मूलभूत विशेषता है | भारत भूमि पर अनेक प्रकार की भौगोलिक , आर्थिक , सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताऐं विद्यमान होने के बावजूद भी संस्कृति में मूलभूत एकता पाई जाती है | भारत का क्षेत्रफल विशाल है यहां की जनसंख्या के विषय में ईसा पूर्व पांचवी सदी में इतिहास के जनक हेरोडोटस ने कहा कि हमारे ज्ञात राष्ट्रों में सबसे अधिक जनसंख्या भारत की हैं विशाल जनसंख्या वाले इस देश में विभिन्न जातियों एवं धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं इसके द्वारा लगभग 220 भाषाएं बोली जाती हैं

    1.  विष्णु पुराण में कहा गया है कि “वह देश जो समुंदर के उत्तर तथा हिमालय पर्वत के दक्षिण में स्थित हैं वह भारतवर्ष का जाता है और जहां की संतान भारती कहलाती हैं ।” कौटिल्य के अर्थशास्त्र के अनुसार हिमालय से लेकर समुंदर तकफैली हुई सहस्त्र योजन भूमि को एक ही चक्रवर्ती सम्राट के राज्य के योग्य बताया है ।रामायण एवं महाभारत जैसे महाकाव्यों को देश के हर कोने में सम्मान मिला हुआ था ।
    2. आध्यात्मिकता और भौतिकता का समन्वय : ~ भारतीय संस्कृति में मूलत : आध्यात्मिकता और भौतिकता का समन्वय पाया जाता है ,जो कि मानवता के लिए श्रेष्ठ है।

    ? प्राचीन भारतीय इतिहास के आधुनिक लेखक?

    प्राचीन भारत के इतिहास में आधुनिक ढंग से अनुसंधान 18 वीं सदी के उत्तरार्ध में आकर प्रारंभ हुआ था जब 1765 में बंगाल और बिहार ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में आया तब शासकों को हिंदुओं के उत्तराधिकार की न्याय व्यवस्था करने में कठिनाई का अनुभव हुआ

    ? 1776 में सबसे अधिक प्रमाणिक मानी जाने वाली मनुस्मृति का अनुवाद ए कोड ऑफ जेनटू लॉज के नाम से कराया गया

    ?प्राचीन कानूनों और रीति-रिवाजों को समझने के लिए व्यापक रूप से 18वीं सदी में कार्य चलता रहा इसके परिणाम स्वरुप 1784 में कोलकाता में एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल नामक संस्था की स्थापना हुई इसकी स्थापना ईस्ट इंडिया कंपनी के सर विलियम जॉनस (1746-1794) नामक सिविल सर्वेंट ने कि जिन्होंने *1789 में अभिज्ञान शाकुंतलम् नामक नाटक को अंग्रेजी में अनुवाद किया

    ? जबकि हिंदुओं के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रन्थ भगवत गीता का अंग्रेजी में अनुवाद 1785 में विल्किन्स ने किया

    ?1804 में बंबई में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना हुई 1823 में लंदन में सोसाइटी ऑफ ग्रेट ब्रिटेन स्थापित हुई

    ? विलियम जोंस ने यह प्रतिपादित किया कि मूलत यूरोपीय भाषाएं संस्कृत और ईरानी भाषा से बहुत मिलती जुलती है इस सत्य की खोज ने जर्मनी, फ्रांस, रूस आदि यूरोपीय देशों में भारतीय विद्या के अध्ययन में गहरी रुचि जगाई और इसी के चलते उन्नीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में इंग्लैंड तथा कई अन्य यूरोपीय देशों में संस्कृत के आचार्य पद (चेयर्स) स्थापित की गई

    ? भारतीय विद्या के अध्ययन को बहुत अधिक बढ़ावा जर्मन के सपूत मैक्स मूलर (1823-1902) ने, जिनका अधिकांश जीवन इंग्लैंड बीता था

    ? 1857 के विद्रोह ने ब्रिटिश शासकों की आंखें खोल दी तथा उन्हें यह लगने लगा कि विदेशी लोगों पर शासन कैसे किया जाए उन्हें उनके रीति रिवाज, सामाजिक व्यवस्थाओं को गहन अध्ययन करके उनकी दुर्बलताओं को जानने की आवश्यकता पड़ी और इसी क्रम में क्रिश्चियन मिशनों के धर्म प्रचारकों ने भी हिंदू धर्म की दुर्बलताओं को जानना आवश्यक समझा ताकि धर्म परिवर्तन करा सके और इसी के कारण ब्रिटिश साम्राज्य को मजबूत मिली

    ? इसी आवश्यकता को पूरा करने के लिए मैक्स मूलर के ) संपादकत्व में विशाल मात्रा में प्राचीन धर्म ग्रंथों का अनुवाद किया गया यह अनुवाद सेक्रेल बुक्स ऑफ द ईस्ट सीरीज में कुल मिलाकर 50 खण्डों में किया गया और इसके कई खंडों के भाग भी प्रकाशित हुए इस सीरीज में कुछ चीनी और ईरानी ग्रंथ भी शामिल किए गए

    ? पाश्यात्य विद्वानों ने दृढ़तापूर्वक कहा है कि भारत वासियों को न तो राष्ट्रीय भावना का एहसास था न किसी प्रकार के स्वशासन का अनुभव ऐसे बहुत सारे निष्कर्ष विंसेंट आर्थर स्मिथ (1846-1920) की पुस्तक अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया में प्रकाशित है प्राचीन भारत का यह पहला सुव्यवस्थित इतिहास 1904 में तैयार किया था तथा इस पुस्तक को उपलब्ध स्त्रोतों के गहन अध्ययन के आधार पर लिखि गई इसमें राजनीतिक इतिहास को प्रधानता दी गई
    इंडियन सिविल सर्विस के निष्ठावान सदस्य के रूप में उन्होंने भारत में विदेशियों की भूमिका को उजागर किया था तथा उनकी पुस्तक के एक -तिहाई भाग में केवल सिकंदर का आक्रमण वर्णित है

    अपने अनुभव के आधार पर लिखा था कि वस्तुतः भारतीय इतिहासकारों का सरोकार शासन के एक मात्र स्वरुप तानाशाही से ही है

    राष्ट्रवादियों की दृष्टि और योगदान

    ⬇⬇⬇

    पाश्चात्य विद्वानों के द्वारा भारतीय इतिहास को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया गया इससे भारत के विद्वानों को एक चुनौती बन कर सामने आएगी

    भारत के अतीत की छवि धूमिल के जाने से जुड़े हुए तथा भारत के पतनोन्मुख सामंती समाज और इंग्लैंड के फलते-फूलते पूंजीवादी समाज के बीच घोर वैंमय देखकर दुखी हुए और उन्होंने भारतीय समाज को सुधारने के एवम स्वराज प्राप्त करने में सहारा मिले के लिए पुनर्जागरण की लहर प्रारंभ की

    ऐसे विद्वानों की भी कमी नहीं थी जो तकनीकी और वस्तुनिष्ठ रुख अपनाए रहे

    ? इस द्वितीय कोटि में आते हैं राजेन्द्र लाल मिश्र (1822-1891) उन्होंने कई वैदिक मूल ग्रंथ प्रकाशित किए और इंडो एलियंस नामक पुस्तक की लिखी

    ? प्राचीन परंपरा के परम प्रेमी लाल ने प्राचीन समाज को तर्कनिष्ठ दृष्टि से देखा और एक पुस्तिका कर लिख कर यह सिद्ध किया कि प्राचीन काल में लोग गौ मांस खाते थे

    महाराष्ट्र में रामकृष्ण गोपाल भंडारकर (1837-1925) और विश्वनाथ काशिनाथ राजवाडे (1869-1926) 2 समर्पित पंडित निकले जिन्होंने देश के सामाजिक और राजनीतिक इतिहास के पुनर्निर्माण के लिए विभिन्न स्त्रोतों को बटोरा

    आर बी भंडाकर में सातवाहनों के दक्कन के इतिहास का और वैष्णव एवं अन्य संप्रदायों के इतिहास का निर्माण किया इन्होंने अपने शोध से विधवा विवाह का समर्थन किया और जाति प्रथा एवं बाल विवाह की कुप्रथा का खंडन किया

    ?बी के रजवाड़े विशुद्ध अनुसंधान की धुन में संस्कृत की पांडुलिपि और मराठा इतिहास के स्त्रोतों की खोज की और 22 खंडों में प्रकाशित किया
    इन्होंने कुछ ज्यादा तो नही लिखा लेकिन 1926 में उन्होंने मराठी में विवाह-प्रथा का जो इतिहास लिखा वो सर्वोपरि है क्योंकि इसमें वेदिक व अन्य शास्त्रों के ठोस आधार पर खड़ा है

    पांडुरंग वामन काणे (1880 -1972) संस्कृत के प्रकांड पंडित एवं समाज सुधारक हुए हैं उनका विशाल कीर्ति स्तंभ हिस्ट्री ऑफ धर्मशास्त्र जो वर्तमान सदी में 5 खंडों में प्रकाशित हुआ है इसके सहारे हम प्राचीन भारत में सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन आसानी से कर सकते हैं

    भारतीय विद्वानों ने राजव्यवस्था और राजनीतिक इतिहास का अध्ययन करके यह सिद्ध किया कि भारत का अपना राजनीतिक इतिहास है

    इस विषय में श्रेय के अधिकारी है *पुरालेखविद देवदत्त रामकृष्ण भंडाकर (1875-1950) जिन्होंने अशोक पर तथा प्राचीन भारत की राजनीतिक संस्थाओं पर कई पुस्तकें प्रकाशित की है

    ? हेमचंद्र रायचौधरी (1892- 1957) ने भारत (महाभारत) काल से अर्थात ईसा पूर्व दसवीं सदी से लेकर गुप्त साम्राज्य के अंत तक प्राचीन भारत के इतिहास का पुनर्निर्माण किया यह यूरोपीय इतिहास के अध्यापक भी थे

    ? हिंदू पुनर्जागरणवाद का इससे भी अधिक पुट आर सी मजूमदार (1818-1980) के लेखों में मिलता है उनके खंडों में प्रकाशित हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ इंडिया पीपल के महासंपादक थे

    ? प्राचीन भारतीय इतिहास के अधिकांश लेखकों ने दक्षिणी भारत पर समुचित ध्यान नहीं दिया था लेकिन दक्षिण भारत में उत्पन्न हुए महान इतिहासविद ए नीलकंठ शास्त्री (1812-1975) ने अपनी पुस्तक ए हिस्ट्री ऑफ एंसीएन्ट इंडिया में इसी मार्ग का अनुसरण किया परंतु उन्होंने ए हिस्ट्री ऑफ साउथ इंडिया लिखकर इस त्रुटि को परिमार्जन कर दिया उन्होंने अपनी भारत की राजव्यवस्था और समाज के स्वरुप को अपने सामान्य निष्कर्ष से प्रतिपादित किया है

    जहां वी ए स्मिथ ने अपने इतिहास में सिकंदर के आक्रमण को लगभग एक तिहाई स्थान दिया वहीं भारतीय विद्वानों ने इस विषय को बहुत कम स्थान दिया

    प्रत्युत उन्होंने सिकंदर के साथ पोरस की बातचीत को तथा भारत के पश्चिमोत्तर प्रांत को सेल्युकस के हाथ से चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा मुक्त कराने की बात को विशेष महत्व दिया

    ? के पी जायसवाल (1881- 1937) और ए एस अल्तेकर (1898-1959) ने देश को शको और कुषाणों के शासन से मुक्त कराने में भारतीय राजवंशो की भूमिका को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया

    ? के पी जायसवाल का सबसे बड़ा श्रेय है कि उन्हें भारतीय स्वैरतंत्र (तानाशाही) की कपोल कल्पना का उन्होंने अंत किया था 1910-12 के बीच उन्होंने कई लेख प्रकाशित करके यह सिद्ध किया कि भारत की प्राचीन काल में यही गणराज्यों का अस्तित्व था जो अपना शासन आप चलाते थे उनके मन्तव्य 1924 में हिंदू क्वॉलिटी नामक पुस्तक प्रकाशित की

    उस पर यूएन घोघाल (1886- 1969) सहित बहुत से लोगों ने आपत्ति की फिर भी गणतांत्रिक प्रयोग की प्रथा के बारे में उनकी मुलधरना व्यापक रूप से मार ली गई और उनकी अग्रणीय कृति हिंदू पॉलिटी ( संप्रति छठा संस्करण में) क्लासिक रचना मानी जाती है

    अराजनैतिक इतिहास की ओर मोड़

    ⬇⬇⬇

    ? ब्रिटिश इतिहासकार संस्कृतविद ए एल बैशम (1914-1986) ने प्रश्न उठाया कि प्राचीन भारत को आधुनिक दृष्टिकोण से देखना कहां तक उचित है उनकी पुस्तक वंडर दैट वाज इंडिया 1951|
    प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता के विभिन्न पक्षों को सुव्यवस्थित सर्वेक्षण है और उन दृष्टिदोषों से रहित है जिनसे वी ए स्मिथ आदि ब्रिटिश लेखकों की कृतियां ग्रस्त है

    ? डी डी कोसंबी (1907-1966) की पुस्तक एन इंट्रोडक्शन टू द स्टडी ऑफ इंडियन हिस्ट्री 1957 में लक्षित होता है उनके विचार एंसीएण्ड इंडियन कल्चर एंड सिविलाइज़ेशन: ए हिस्टोरिकल आउटलाइन (1965) के द्वारा अधिक फैले*

    कौशांबी ने भारतीय इतिहास को नया रास्ता दिखाया इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या कार्ल मार्क्स के लेखों से निकाली जाती है जो इन्होंने प्राचीन भारतीय समाज अर्थतंत्र और संस्कृति के इतिहास के उत्पादन की शक्तियों और संबंधों के विकास में अभिन्न अंग के रूप में प्रस्तुत किया

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