मराठा शासन
मराठों की शक्ति को सर्वप्रथम पहचानने वाला व्यक्ति अहमद नगर का प्रमुख मलिक अम्बर था। उसने मुगलों के विरूद्ध युद्ध में मराठों को अपनी सेना में शामिल कर उनका उपयोग किया। प्रथम मुगल शासक जिसने मराठों को उमरावर्ग में शामिल किया जहाँगीर था। उसी के काल में मराठों को महत्ता मिली।
परन्तु शाहजहाँ के काल से मराठों एवं मुगलों के बीच सम्बन्ध बिगड़ने लगे और उनमें संघर्ष प्रारम्भ हो गया। औरंगजेब के काल में यद्यपि हिन्दू सरदारों की संख्या सर्वाधिक थी और उसमें भी मराठों का प्रतिशत सबसे अधिक था फिर भी शिवा जी को एक अलग मराठा राज्य का निर्माण करने में सफलता मिली।
मराठों के उदय के कारण:-
भौगोलिक क्षेत्र:-
एम जी रानाडे ने अपनी पुस्तक The Rise of Maratha Power में मराठों की ऊबड़-खाबड़ भौगोलिक क्षेत्र को उनके उदय का प्रधान कारण माना है।
भक्ति आन्दोलन का प्रभाव:-
14हवीं शताब्दी के भक्ति आन्दोलन का मराठों के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका रही। मराठा सन्तों ने एक ही भाषा में अपने उपदेश देकर तथा वहाँ के उच्च और निम्न वर्ग को एक साथ जोड़कर राष्ट्र की भावना भर दी। शिवाजी के गुरु समर्थ गुरु रामदास ने दसबोध नामक पुस्तक लिखी जिसका प्रभाव शिवाजी पर पड़ा।
औरंगजेब की नीति:-
औरंगजेब की धार्मिक नीति भी मराठें के उदय का प्रमुख कारण बनी। उसकी नीतियों से हिन्दुओं में निराशा व्याप्त थी और इसने एक अलग राज्य के उदय सहायता प्रदान की।
शिवाजी का चमत्कारिक व्यक्तित्व:-
मराठों के उदय का सबसे प्रमुख कारण शिवाजी के चमत्कारिक व्यक्तित्व को माना जाता है। उन्होंने एक कुशल नेतृत्व प्रदान कर उपर्युक्त सभी परिस्थितियों का फायदा उठाया और एक स्वतन्त्र मराठा राज्य की स्थापना करने में सफल हुए।
शिवाजी (1627-80)
मराठा शासन शिवाजी
- जन्म:- 1627 शिवनेर के पहाड़ी दुर्ग में। शिवनेरी देवी के नाम पर ही इनका नाम शिवा जी रखा गया।
- माँ का नाम:- जीजा बाई (देवगिरि के यादव वंश से सम्बन्धित)।
- पिता का नाम:- शाह जी भोंसले
शाह जी ने ( मेवाड़ के सिसौदिया वंश से सम्बन्धित ) शिवा जी पर सर्वाधिक प्रभाव अपनी माता जीजाबाई, दादा जी कोंड देव और समर्थ गुरु रामदास का पड़ा। इन लोगों ने शिवाजी को एक अलग मराठा राज्य की स्थापना के लिए प्रेरित किया। शिवाजी की मुख्य उपलब्धियाँ उनके द्वारा मराठा राज्य की स्थापना, विजयें एवं एक योग्य प्रशासन में निहित थी।
शिवाजी की विजयें:-
शिवा जी का प्रारम्भिक कर्म क्षेत्र मालवा प्रदेश था। यहीं के लोगों को उन्होंने अपनी सेना में भर्ती किया। उनके पिता ने सर्वप्रथम 12 वर्ष की अवस्था में उन्हें पूना की जागीर प्रदान की।
- 1639:- पूना की जागीर (12 वर्ष की अवस्था में)
- 1641– सईबाई निम्बालकर के साथ विवाह।
- 1643:- सिंहगढ़ के किले को जीता (बीजापुर से)
- 1646:- तोरण को जीता (बीजापुर से)
- 1647:- कोंडदेव की मृत्यु।
- 1648– पुरंन्दर का किला जीता (मराठा सरदार नीलोजी नीलकंठा से)
- 1657:- मुगलों से पहली मुठभेड़
- 1657:- कोंकण जीता (मराठा सरदार चन्द्रराव मोरे से)
- 1659:- अफजल खाँ का वध।
अफजल खाँ बीजापुर के शासक का सेनापति था। इसे शिवाजी को कैद करने या मारने के लिए भेजा गया था। अफजल खाँ कृष्ण जी भास्कर को दूत बनाकर शिवाजी के पास भेजा था जबकि शिवाजी के दूत का नाम गोपीनाथ था।
अफजल खाँ ने गले मिलने के समय अपने तलवार से शिवाजी की हत्या करना चाही परन्तु शिवाजी ने अपने बघनखे से अफजल खाँ की हत्या कर दी। इस विजय से शिवा जी का यश दक्षिण में फैल गया।
1663 शाइस्ता खाँ प्रकरणः-
शाइस्ता खाँ औरंगजेब का मामा था। इसे दक्षिण का सूबेदार बनाकर शिवाजी को पकड़ने के लिए भेजा गया। शाइस्ता खाँ ने पूना में अपना डेरा जमाया परन्तु रात्रि के समय में शिवा जी ने अचानक उसके निवास पर हमला बोल दिया। इस अचानक आक्रमण से उसका अंगूठा कट गया जबकि उसका पुत्र फतेह खाँ मारा गया। इस घटना से मुगल प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा।
1664 सूरत की प्रथम लूट:–
इस समय सूरत में औरंगजेब का गर्वनर इनायत खाँ था। अपने लूट में शिवा जी ने अंग्रेजों और डचों की कोठियों से कोई छेड़छाड़ नहीं की।शिवाजी के कार्यों से क्रुध होकर औरंगजेब ने जयसिंह को दक्षिण का सूबेदार बनाकर शिवा जी को पकड़ने के लिए भेजा।
पुरन्दर की सन्धि (22 जून 1665):-
जयसिंह ने दक्षिणी राज्यों को अपनी ओर मिलाकर शिवाजी के भागने के सारे रास्ते बन्द कर दिये। उसने औरंगजेब को पत्र लिखा कि हमने शिवा जी को वृत्त के केन्द्र की परिधि की तरह से चारों ओर से घेर लिया है अतः शिवा जी को पुरन्दर की सन्धि करनी पड़ी। उस समय मनूची भी वहाँ उपस्थित था।
इस सन्धि की शर्तें निम्नलिखित थी-
- शिवाजी अपने 35 में से 23 किले मुगलों को दे देगें।
- शिवाजी मुगलों की तरफ से युद्ध एवं सेवा करेगें।
- शिवा जी के पुत्र शम्भा जी को मुगल दरबार में 5000 का मनसब दिया जायेगा।
1666 ई0 में शिवा जी आगरा पहुँचे राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह ने शिवा जी की सुरक्षा की गारंटी ली। दरबार में इन्हें इनके पुत्र के साथ 5000 का मनसब दिया गया। जिससे शिवा जी नाराज हो गये और इन्हें बन्दी बना कर जयसिंह के जयपुरी महल में रखा गया।
हीरो जी फरजन्द जो शिवा जी की हम शक्ल का था उसको लिटाकर शिवा जी भाग निकले। दक्षिण के सूबेदार मुअज्जम के प्रयास से औरंगजेब ने शिवा जी के समक्ष सन्धि का प्रस्ताव रखा और उन्हें राजा की उपाधि दी यह घटना 1668 ई0 की है।
सूरत की दुबारा लूट (1670):-
इस लूट में शिवाजी को लगभग 66 लाख की सम्पत्ति प्राप्त हुई।
रायगढ़ में राज्याभिषेक (1674):-
दक्षिण के ब्राह्मणों ने शिवाजी को छत्रपति की उपाधि देने से इन्कार कर दिया, फलस्वरूप उन्होंने वाराणसी के ब्राह्मण गंगाभट्ट को बुलाया और उसी ने शिवा जी को छत्रपति की उपाधि दी। इस अवसर पर शिवाजी ने अपनी दूसरी पत्नी शोएराबाई के साथ पुनः विवाह किया और उसे राजमहिषी घोषित किया गया।
जून 1674 में शिवाजी की माँ का देहावसान हो गया। फलस्वरूप सितम्बर 1674 ई0 निश्चल पुरी गोस्वामी नामक तांत्रिक की सहायता से शिवाजी का दूसरी बार राज्याभिषेक सम्पन्न हुआ।
कर्नाटक अभियान (1677-78):-
यह शिवाजी का अन्तिम अभियान था। इसी समय शिवा जी ने 1678 ई0 में जिंजी के किले को जीता। यह शिवा जी की अन्तिम विजय थी।
1680 ई0 में शिवा जी बीमार पड़े और और 1680 में उनकी मृत्यु हो गई। शिवाजी की कुल सात पत्नियां थी उनमें एक पत्नी पुतलीबाई उनके साथ सती हो गई।
भू-राजस्व व्यवस्था
शिवा जी ने किसानों के साथ भू-राजस्व व्यवस्था की। उनकी भू-राजस्व व्यवस्था का आधार मलिक अम्बर की भू-राजस्व व्यवस्था थी। उन्होंने 1679 ई0 में समस्त भूमि की माप करवाई। माप का आधार छड़ी, लाठी, काठी अथवा लाठा था। इसे मुगल काल में जरीब कहा जाता था।
यह काठी पाँच हाथ और पाँच मुठ्ठी लम्बी होती थी। 20 काठी लम्बाई व 20 काठी चैड़ाई भूमि को बीघा कहा जाता था। 120 बीघे को चावर कहा जाता था।
शिवा जी ने उपज का 33% से 40% के बीच भू-राजस्व लिया हलांकि उन्होंने जागीरदारी व्यवस्था समाप्त करने की कोशिश की परन्तु अधिकारियों को मोकासा (जागीरें) देना बन्द नही कर पाये और न ही देशमुखी (जमीदारी) व्यवस्था को समाप्त कर सके।
शिवाजी की आय के दो अन्य महत्वपूर्ण स्रोत थे-
1. चौथ:- यह पड़ोसी राज्यों की आय का 1/4 भाग इसलिए लिया जाता था ताकि शिवा जी उस राज्य पर आक्रमण न करें अर्थात पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा के लिए लिया गया कर।
2. सरदेश मुखी:- शिवा जी अपने को सम्पूर्ण मराठा क्षेत्र का सबसे बड़ा देशमुख मानते थे। इसी कारण वह उनके भू-राजस्व का 10% लेते थे इसे सरदेशमुखी कहा गया।
शिवाजी की धार्मिक नीति
शिवा जी की धार्मिक नीति मुस्लिमों के प्रति भी सहिष्णु थी उन्होंने कभी कुरान का अपमान नही किया। न ही मुस्लिम औरतों के साथ कभी गलत व्यवहार किया गया। शिवाजी का प्रबल आलोचक खाफी खाँ भी उनकी धार्मिक नीति की प्रशंसा करता है।
शिवाजी का प्रशासन
केन्द्रीय प्रशासन:–
- प्रशासन का केन्द्र बिन्दु राजा था।
- राजा की सहायता के लिए 8 व्यक्तियों का एक समूह था जिसे अष्ट प्रधान कहा गया।
- यह एक सलाहकारी संस्था थी जिसके निर्णय को मानने के लिए राजा बाध्य नहीं था।
पेशवा:- यह प्रधानमंत्री की तरह था। सरकारी कार्यों में राजा की मुहर के साथ इसकी भी मुहर लगती थी।
अमात्य अथवा मजूमादार:- यह राज्य की आय और व्यय का व्यौरा रखता था। इसकी हैसियत आधुनिक वित्तमंत्री की तरह थी।
मंत्री अथवा वाकिया नवीस:– यह राजा के दैनिक कार्यों को लेखबद्ध करता था। राजा के जीवन की सुरक्षा की देखभाल भी करता था गुप्तचर विभाग भी इसी के अधीन था। इसे आधुनिक गृह मंत्री कहा जा सकता है।
सचिव अथवा गुरुनवीस अथवा चिटनिस:– यह पत्राचार विभाग से सम्बन्धित था।
- सुमन्त अथवा दबीर:- विदेश मंत्री।
- सरनौबत अथवा सेनापति:- यह सेना का प्रमुख था।
- पंडित राव:– धार्मिक मामलों का प्रमुख।
- न्यायाधीश:– न्याय विभाग का प्रमुख।
केन्द्रीय विभाजन:-
शिवा जी का सम्पूर्ण क्षेत्र स्वराज नाम से जाना जाता था। यह स्वराज चार प्रान्तों में विभाजित था-
- उत्तरी प्रान्त:- यह सूरत से पूना तक विस्तृत था। इसका प्रमुख मोरो त्रिम्बक पिंगले था।
- दक्षिण पश्चिमी प्रान्त:- यह कोंकण से लेकर सावंत वाड़ी तक विस्तृत था। इसका प्रमुख अन्ना जी दत्वो था।
- दक्षिण पूर्वी प्रान्त:– इसमें सतारा कोल्हापुर धारवाड़ आदि क्षेत्र आते थे। इसके प्रमुख दत्तो जी पन्त थे।
- दक्षिणी प्रान्त:– इसमें कुल हाल में जीते हुए क्षेत्र जैसे जिंजी आदि शामिल किये गये। इसका प्रमुख रघुनाथ पन्त हनुमन्तै था।
प्रान्तों के प्रमुख को सरकारकुन अथवा सर-सूबेदार कहा जाता था।
प्रान्तीय विभाजन:- प्रान्त तर्फों में बटें थे, तर्फ महल में एवं महल ग्रामों में विभाजित थे। तर्फ का प्रमुख सर हवलदार, महल का प्रमुख हवलदार और ग्राम में पाटिल अथवा पटेल प्रमुख होता था।
दुर्ग:- शिवा जी के क्षेत्र में कुल 240 या 250 दुर्ग थे इस दुर्ग की सुरक्षा का कार्य हवलदार का था। जबकि इसके भू-राजस्व से सम्बन्धित सारा कार्य सूबेदार का था।
नौ-सेना:–शिवा जी के पास एक नौ सेना थी, तीन नगरों में उनके नौ सैनिक अड्डे भी थे।
1. कोलाबा
2. कल्याण
3. भिवण्डी
घुड़सवार सेना:- शिवा जी की घुड़सवार सेना अत्यन्त योग्य थी घुड़सवार सेना को पागा कहा जाता था। इसमें दो तरह के सैनिक थे-
- सिलेदार:-जिन्हें अस्त्र-शस्त्र एवं घोड़े का स्वयं प्रबन्ध करना पड़ता था।
- बरगीर:-इन्हें राज्य की ओर से घोड़े अस्त्र-शस्त्र मिलते थे।
घुड़सवार सेना का सैनिक संगठन निम्न प्रकार था-
- 25 बरगीर पर एक हवलदार
- 5 हवलदार पर एक जुमलादार
- 10 जुमलादार पर एक हजारी
- 1 हजारी के ऊपर या इससे बड़ा पद पंच हजारी था।
पैदल सैनिक:-
पैदल सैनिकों को पाइक कहा जाता था इनका क्रम निम्नलिखित प्रकार का था-
- 9 पाइक पर 1 नायक
- 10 नायक पर 1 हवलदार
- 3 हवलदार पर 1 जुमलादार
- 10 जुमलादार पर एक हजारी और इससे बड़ा पद सात हजारी था।
केन्द्रीय शासन
केन्द्रीय शासन के अन्तर्गत छत्रपति की स्थिति सबसे उच्च थी ।उसमें सभी कार्यपालिका, विधायी व न्यायिक शक्तियाँ निहित थी ।शिवाजी के केंद्रीय प्रशासन में ‘ अष्टप्रधान ‘का स्वरूप देखने को मिलता है ।
अष्टप्रधान –
यह 8 मंत्रियों का समूह होता था, जो शासन से सम्बंधित अलग-अलग कार्यों को देखते थे, किन्तु इनकी स्थिति आज के मन्त्रिमण्डल से भिन्न थी तथा ये सभी मन्त्री केवल व्यक्तिगत रूप से शिवाजी के प्रति उत्तरदायी थे तथा उनकी भूमिका सलाहकारी थी ।
इनका क्रम है
- पेशवा ?यह प्रधानमंत्री था ।सामान्य प्रशासन से संबंधित सभी सैनिक व असैनिक कार्य देखता था ।इसकी विशेष भूमिका अर्थव्यवस्था से संबंधित थी ।
- सर -ए -नौबत ?यह सैन्य विभाग का प्रमुख था ।इसका काम सैनिक भर्ती, उन्हे वेतन देना, जागीरों की व्यवस्था, सैनिक सामग्री की व्यवस्था आदि देखता था ।
- अमात्य /मजमुआदार ?राज्य की आय -व्यय लेखा-जोखा रखना ।
- सचिव /शुरू – नवीस?इसे चिटनिस भी कहा जाता था और यह राजकीय पत्राचार का कार्य देखता था ।
- सुमन्त /दबीर ?विदेशी मामलों की देखरेख करने वाला ।
- वाकिया – नवीस/मन्त्री ?राजा के दैनिक कार्यों को लेखबद्ध करना ।
- पण्डित राव ?धार्मिक मामलों के प्रमुख ।
- न्यायाधीश ?न्याय से संबंधित ।
महत्वपूर्ण बात – पण्डित राव वन्यायाधीश के अलावा सभी को सैन्य सेवा देनी होती थी ।
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